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समा पंचम / ऋषि पंचम

पर्व का परिचय:


सामा पंचमी, जिसे ऋषि पंचमी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर में आती है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मासिक धर्म के दौरान जाने-अनजाने में हुए दोषों के निवारण के लिए किया जाता है। इस दिन सप्तर्षियों की पूजा की जाती है और पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व होता है।​

कथा:


ब्राह्मण पुराण के अनुसार, विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण अपनी पत्नी सुशीला और दो संतान—एक पुत्र और एक पुत्री—के साथ रहते थे। जब उनकी पुत्री विवाह योग्य हुई, तो उसका विवाह एक समान कुल वाले परिवार में कर दिया गया। कुछ समय बाद वह विधवा हो गई और अपने माता-पिता के साथ गंगा तट पर रहने लगी।​

एक दिन, जब वह सो रही थी, उसके शरीर में कीड़े पड़ गए। उत्तंक ने ध्यान लगाकर देखा तो पता चला कि पूर्व जन्म में वह ब्राह्मणी थी और रजस्वला होने के बावजूद उसने रसोई के बर्तनों को छू लिया था। इस जन्म में भी उसने ऋषि पंचमी व्रत नहीं किया था। पिता के निर्देश पर उसने ऋषि पंचमी व्रत किया, जिससे उसे सभी पापों से मुक्ति मिली और अगले जन्म में उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई।​

हम यह पर्व क्यों मनाते हैं:


यह व्रत महिलाओं द्वारा मासिक धर्म के दौरान जाने-अनजाने में हुए पापों के प्रायश्चित के लिए किया जाता है। सप्तर्षियों की पूजा करके महिलाएं शुद्धता और पवित्रता की प्राप्ति करती हैं। यह व्रत संतान सुख, अखंड सौभाग्य और पारिवारिक सुख-शांति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।​

पर्व की प्रमुख परंपराएँ:

स्नान: महिलाएं सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों या जलाशयों में स्नान करती हैं।​

पूजा: सप्तर्षियों की प्रतिमाएं बनाकर या चित्र स्थापित करके पूजा की जाती है।​

व्रत: इस दिन अनाज, शाकभाजी और नमक का सेवन नहीं किया जाता है।​

दान: व्रत के अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दिया जाता है।​

पर्व का महत्व:


ऋषि पंचमी व्रत महिलाओं के लिए पवित्रता और शुद्धता की प्राप्ति का माध्यम है। यह व्रत संतान सुख, अखंड सौभाग्य और पारिवारिक सुख-शांति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। सप्तर्षियों की पूजा करके महिलाएं अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होती हैं।

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