त्योहार का परिचय:
संवत्सरी जैन धर्म का एक अत्यंत पावन पर्व है, जिसे पर्युषण पर्व के अंतिम दिन मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः श्वेतांबर जैन संप्रदाय द्वारा श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। इस दिन आत्मशुद्धि, क्षमा, और आत्मचिंतन का विशेष महत्व होता है। 'संवत्सरी' शब्द का अर्थ है ‘वार्षिक’ — यानी वर्ष में एक बार हर जीव से क्षमा माँगने और क्षमा देने का दिन।
पृष्ठभूमि और सार:
पर्युषण के आठ या दस दिनों में जैन धर्मावलंबी तप, उपवास, और आत्मविश्लेषण करते हैं। इसका अंतिम दिन — संवत्सरी — आत्मशुद्धि और क्षमायाचना का दिन है। इस दिन सभी अपने जीवन में किए गए कर्मों के लिए क्षमा माँगते हैं।
लोग एक-दूसरे से कहते हैं:
“मिच्छामी दुक्कड़म्” – अर्थात “मेरी गलतियों को क्षमा करें।”
संवत्सरी क्यों मनाई जाती है:
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आत्मा की शुद्धि के लिए
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सभी से क्षमा माँगकर शांति और प्रेम फैलाने के लिए
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अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों को सशक्त करने हेतु
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स्वयं के भीतर झाँकने और सुधार की भावना के लिए
मुख्य परंपराएँ:
🔸 प्रतिक्रमण:
दैनिक जीवन की गलतियों को स्वीकार कर प्रायश्चित करने की एक विधिपूर्ण क्रिया।
🔸 मिच्छामी दुक्कड़म् कहना:
हर व्यक्ति से क्षमा माँगना, चाहे वह परिचित हो या अपरिचित।
🔸 उपवास और मौन:
कई लोग इस दिन पूर्ण उपवास रखते हैं और मौन व्रत भी करते हैं।
🔸 ध्यान और ग्रंथपाठ:
जैन ग्रंथ जैसे कल्पसूत्र का पाठ और ध्यान किया जाता है।
त्योहार का महत्व:
आत्मिक आरंभ:
गलतियों को स्वीकार कर नया अध्याय शुरू करने का दिन।
सर्व जीवों के प्रति करुणा:
हर प्राणी के प्रति अहिंसा और दया की भावना को जागृत करता है।
नैतिक उत्तरदायित्व:
अपने कर्मों की जिम्मेदारी लेना और सुधार करना सिखाता है।
धार्मिक चेतना:
समाज को जैन धर्म की शिक्षाओं से जोड़ता है।