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परिचय
षटतिला एकादशी पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसमें तिल (तिल्ली) का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन का नाम 'षट' यानी छह और 'तिला' यानी तिल से मिलकर बना है, जो छह प्रकार से तिल का उपयोग करने पर आधारित है।

षटतिला व्रत का रहस्य
व्रत के दौरान तिल का उपयोग छह रूपों में किया जाता है – तिल स्नान, तिल उबटन, तिल जल, तिल भोजन, तिल होम (हवन), और तिल दान। यह सभी क्रियाएं आत्मिक शुद्धि, पुण्य और भगवान की कृपा प्राप्ति में सहायक मानी जाती हैं।

पौराणिक कथा
पद्म पुराण के अनुसार एक ब्राह्मणी स्त्री थी जो पूजा करती थी पर कभी दान नहीं करती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग में स्थान तो मिला पर भोजन नहीं मिला। जब उसने विष्णु भगवान से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने उसे शटतिला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। व्रत के बाद उसे सब सुख प्राप्त हुए।

व्रत विधि
सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करें। तिल के जल से स्नान, तिलयुक्त भोजन, तिल का दान और तिल से हवन करना चाहिए। इस दिन व्रतधारी उपवास रखते हैं या फलाहार करते हैं। रात को जागरण और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं।

महत्त्व और लाभ
यह व्रत सभी पापों से मुक्ति दिलाता है। गरीबों और जरूरतमंदों को तिल का दान करने से अन्नदान के समान पुण्य मिलता है। यह व्रत मोक्षदायक और पुण्यवर्धक माना गया है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी तिल बहुत लाभदायक है।

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