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परिचय
लोहरी मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है और रबी की फसल पकने पर प्रकृति और अग्निदेव के प्रति आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।

लोहरी की पौराणिक कथा
लोहरी का संबंध दुल्ला भट्टी नामक एक लोकप्रिय पात्र से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने गरीब लड़कियों की शादी करवाई और अमीरों से लूट कर गरीबों की मदद की। आज भी लोहरी की रात लोग “सुंदर मुंदरिए...” गीत गाकर उसकी वीरता का गुणगान करते हैं।

लोहरी के मुख्य रीति-रिवाज
इस दिन लोग खुले मैदान या घर के बाहर अग्निकुंड जलाते हैं। सूखी लकड़ियां, गुड़, तिल, मूंगफली, मक्का आदि अग्नि में अर्पित किए जाते हैं। लोग आग के चारों ओर घूमते हैं, गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं।

बच्चों के लिए विशेष अवसर
लोहरी बच्चों के लिए भी खास होती है। वे घर-घर जाकर लोहरी मांगते हैं और उन्हें मिठाइयां, मक्का, मूंगफली और पैसे दिए जाते हैं।

संगीत और नृत्य की रंगत
भांगड़ा और गिद्धा नृत्य, ढोल की थाप और पारंपरिक लोकगीत इस त्योहार की जान हैं। सभी लोग उल्लासपूर्वक नाचते और गाते हैं।

कृषि का उत्सव
लोहरी रबी फसल की बुआई और पकने की खुशी का प्रतीक है। यह किसानों के लिए उत्सव का अवसर होता है जब वे प्रकृति और मेहनत के फल के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं।

आधुनिक समय में लोहरी
अब यह त्योहार शहरी क्षेत्रों में भी बड़े उत्साह से मनाया जाता है। नवविवाहित जोड़ों और नवजात बच्चों के लिए विशेष लोहरी का आयोजन होता है।

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