परिचय
सर्वपितृ श्राद्ध पितृ पक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है और यह भाद्रपद माह की कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है। यह दिन उन सभी पूर्वजों को समर्पित है जिनकी तिथि अज्ञात है या जिनका श्राद्ध नहीं किया गया हो।
धार्मिक महत्व
मान्यता है कि इस दिन किया गया श्राद्ध सभी पितरों को तृप्त करता है और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है। यह श्राद्ध कुल की समृद्धि और रक्षात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
कौन करें श्राद्ध
घर का पुत्र या कोई पुरुष सदस्य, श्रद्धा और नियम से यह श्राद्ध करे तो अत्यंत फलदायक होता है। यदि किसी पूर्वज का विशेष तिथि पर श्राद्ध नहीं किया जा सका हो, तो इस दिन वह पूर्ति की जा सकती है।
मुख्य विधियाँ
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प्रातः स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण करना
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तिल, जौ और जल से तर्पण करना
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चावल, घी से पिंडदान
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गाय, कौवे और कुत्तों को भोजन कराना
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ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा देना
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विष्णु सहस्रनाम या गरुड़ पुराण पाठ करना
संस्कृतिक परंपरा
कई भक्तजन गंगा जैसे पवित्र तीर्थस्थलों पर जाकर श्राद्ध करते हैं। ऐसा करने से पितरों को विशेष तृप्ति मिलती है।
निष्कर्ष
सर्वपितृ श्राद्ध सभी पूर्वजों को श्रद्धा से याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए किया जाने वाला पुण्य कार्य है। यह जीवन में पुण्य, सुख और आध्यात्मिक शांति लाता है।




