परिचय
त्रयोदशी श्राद्ध पितृ पक्ष की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। यह श्राद्ध उन पितरों के लिए होता है जिनका देहांत त्रयोदशी तिथि को हुआ हो।
धार्मिक महत्व
त्रयोदशी श्राद्ध से पितरों की आत्मा को तृप्ति और शांति मिलती है। यह परंपरा पूर्वजों के सम्मान और पारिवारिक सुख-शांति के लिए अत्यंत आवश्यक मानी जाती है।
कौन करें श्राद्ध
जिसके पितृ त्रयोदशी तिथि को स्वर्गवासी हुए हों, वह व्यक्ति यह श्राद्ध विधिपूर्वक करे। पुत्र या अन्य नजदीकी पुरुष संबंधी इसे कर सकते हैं। आवश्यकता होने पर महिला सदस्य भी करवाने की व्यवस्था कर सकती हैं।
मुख्य विधियाँ
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प्रातःकाल स्नान कर शुद्धता रखना
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तिल, जल और जौ से तर्पण करना
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चावल और घी से पिंडदान
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गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन कराना
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ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा देना
शास्त्रीय प्रमाण
गरुड़ पुराण एवं अन्य धर्मग्रंथों में पितृपक्ष के प्रत्येक दिन के श्राद्ध का महत्व बताया गया है। त्रयोदशी को किया गया श्राद्ध पितृदोष निवारण में सहायक होता है।
निष्कर्ष
त्रयोदशी श्राद्ध पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु एक महत्वपूर्ण कर्म है। यह परिवार में सुख-शांति लाने वाला तथा आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करने वाला कृत्य है।