मुख्य सामग्री पर जाएं

परिचय
पौष पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के पौष मास की अंतिम तिथि होती है। इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है और यह धार्मिक गतिविधियों जैसे स्नान, दान, व्रत और पूजन के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन से माघ मास का आरंभ होता है जिसे तप और पुण्य का महीना माना गया है।

पौराणिक कथा और महत्व
कहानी के अनुसार, राजा जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित के पितृ दोष से मुक्ति के लिए पौष पूर्णिमा से सर्प यज्ञ की शुरुआत की थी। इस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया था और इसे अत्यंत पवित्र माना गया था। इसलिए इस दिन का महत्व विशेष है।

तीर्थस्नान और दान
इस दिन प्रयागराज, हरिद्वार, वाराणसी, उज्जैन और अन्य तीर्थ स्थलों पर स्नान का विशेष महत्व होता है। दान में तिल, गुड़, घी, कंबल और अनाज आदि देना पुण्यकारी माना गया है। श्रद्धालु इस दिन अपने पितरों के मोक्ष के लिए भी तर्पण करते हैं।

व्रत, पूजन और चंद्रमा दर्शन
व्रतधारी इस दिन फलाहार करते हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजन करते हैं। भगवान विष्णु, शिव और चंद्र देव की आराधना की जाती है। रात्रि में दीप जलाकर भजन कीर्तन होते हैं।

गृह परंपराएं और शुभ कार्य
कई स्थानों पर विवाह, नामकरण आदि संस्कार इस दिन से शुरू करने को शुभ माना जाता है। महिलाएं संतान प्राप्ति और परिवार की सुख-शांति के लिए व्रत रखती हैं।

हमारे साप्ताहिक समाचार पत्र के साथ अद्यतन रहें

नवीनतम अपडेट, टिप्स और विशेष सामग्री सीधे अपने इनबॉक्स में प्राप्त करें।