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परिचय
द्वादशी श्राद्ध पितृ पक्ष की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है। यह उन पितरों की आत्मा की शांति हेतु किया जाता है जिनका निधन द्वादशी तिथि को हुआ हो।

धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में हर तिथि के अनुसार श्राद्ध की परंपरा है। द्वादशी श्राद्ध करने से पूर्वजों को आत्मिक शांति मिलती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।

कौन करे द्वादशी श्राद्ध
जिस व्यक्ति के पूर्वजों का निधन द्वादशी तिथि को हुआ हो, उसे यह श्राद्ध विधिपूर्वक करना चाहिए। यह श्राद्ध परिवार के पुत्र या जिम्मेदार सदस्य द्वारा किया जाता है।

मुख्य विधियाँ

  • तिल, जल और कुश से तर्पण

  • चावल, घी और तिल से पिंडदान

  • कुत्ते, गाय और कौवे को भोजन

  • ब्राह्मण को भोजन और दान

  • मौन रहना और स्वच्छता का पालन

शास्त्रों में उल्लेख
गरुड़ पुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णन है कि तिथि के अनुसार श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को गति मिलती है। पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है।

निष्कर्ष
द्वादशी श्राद्ध एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक सम्मान देने का एक माध्यम है। इससे पारिवारिक और आध्यात्मिक संतुलन प्राप्त होता है।

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