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परिचय
दशमी श्राद्ध पितृपक्ष के दौरान कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनका निधन दशमी तिथि को हुआ था।

धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में दशमी श्राद्ध का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार तिथि अनुसार श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। यह पितृ ऋण से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।

कौन करें यह श्राद्ध
जिसके पितृ दशमी तिथि को स्वर्ग सिधारे हों, उनका पुत्र या कोई निकट पुरुष रिश्तेदार यह श्राद्ध विधिपूर्वक करता है। यह श्राद्ध कर्तव्य और श्रद्धा का प्रतीक है।

मुख्य विधियाँ

  • तर्पण – तिल, जल और कुश के साथ

  • पिंडदान – चावल और घी के पिंड अर्पित करना

  • गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन देना

  • ब्राह्मणों को भोजन कराना और दक्षिणा देना

  • गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन का दान देना

शास्त्रों का समर्थन
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि समय पर और विधिवत श्राद्ध करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ प्रसन्न होकर परिवार को सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

निष्कर्ष
दशमी श्राद्ध पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है। यह केवल धार्मिक कार्य नहीं बल्कि आत्मिक उन्नति और पितरों के प्रति कर्तव्य निर्वहन का एक पावन अवसर है।

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