परिचय
सप्तमी श्राद्ध पितृपक्ष की सप्तमी तिथि को उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, जिनका निधन इस तिथि को हुआ था। यह दिन परिवार के दिवंगत सदस्यों को याद करने और उनके लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर है।
धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में पितृ ऋण को चुकाना एक महत्वपूर्ण कर्तव्य माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, सही तिथि पर श्रद्धापूर्वक किया गया श्राद्ध पितरों को संतुष्टि और मोक्ष प्रदान करता है।
मुख्य विधियाँ और परंपराएँ
इस दिन श्राद्धकर्ता द्वारा कई धार्मिक कार्य किए जाते हैं:
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तर्पण: तिल, जल और जौ से पितरों को तर्पण दिया जाता है।
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पिंडदान: चावल, तिल और घी से बने पिंड अर्पित किए जाते हैं।
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कुत्ते, गाय और कौए को भोजन कराया जाता है।
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ब्राह्मणों को भोज और दान देकर तृप्त किया जाता है।
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गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन दान दिया जाता है।
शास्त्रों में प्रमाण
गरुड़ पुराण, मनुस्मृति और धर्मशास्त्रों में पितृपक्ष और श्राद्ध कर्म के महत्व का विस्तार से उल्लेख है। यह आत्मा की उन्नति और परिवार की सुख-शांति के लिए आवश्यक माना गया है।
सांस्कृतिक प्रसंग
सप्तमी श्राद्ध भारत के विभिन्न हिस्सों में परंपरागत रूप से मनाया जाता है। यह धर्म, संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों को सुदृढ़ करता है।
निष्कर्ष
सप्तमी श्राद्ध एक पवित्र धार्मिक कर्तव्य है जो पूर्वजों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करता है। यह न केवल आत्मिक कल्याण का माध्यम है, बल्कि परिवार के लिए समृद्धि और आशीर्वाद का स्रोत भी है।




