परिचय
षष्ठी श्राद्ध पितृपक्ष की छठी तिथि को उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, जिनका निधन इस तिथि को हुआ था। यह दिन हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व रखता है।
धार्मिक महत्व
श्राद्ध कर्म पितरों के प्रति कृतज्ञता और प्रेम प्रकट करने का माध्यम है। शास्त्रों के अनुसार, यह आत्मा को तृप्ति और वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करता है।
मुख्य विधियाँ और परंपराएँ
श्राद्धकर्ता द्वारा किए जाने वाले कार्यों में शामिल हैं:
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तर्पण – तिल, जल, जौ और कुशा घास से पितरों को तर्पण दिया जाता है।
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पिंडदान – चावल, घी और तिल से बने पिंड अर्पित किए जाते हैं।
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पशु-पक्षियों को भोजन – गाय, कुत्ते और कौए को भोजन कराना शुभ माना जाता है।
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ब्राह्मण भोज और दान – ब्राह्मणों को भोजन और दान देना अनिवार्य माना गया है।
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गरीबों को दान – अनाज, वस्त्र आदि दान किए जाते हैं।
शास्त्रों में उल्लेख
गरुड़ पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में पितृपक्ष में श्राद्ध की अनिवार्यता और लाभों का उल्लेख मिलता है।
वर्तमान में श्राद्ध का प्रचलन
आधुनिक जीवनशैली के बावजूद ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में श्राद्ध विधि श्रद्धा से की जाती है। कई जगह सामूहिक श्राद्ध भी होते हैं।
निष्कर्ष
षष्ठी श्राद्ध पूर्वजों को सम्मान और आभार प्रकट करने का पवित्र माध्यम है। यह न केवल आत्मिक शांति देता है बल्कि संतान के लिए सुख-शांति और प्रगति का कारण बनता है।




