पर्व का परिचय:
धनतेरस, जिसे 'धन त्रयोदशी' भी कहा जाता है, दीपावली महापर्व की शुरुआत का प्रतीक है। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा की जाती है। धनतेरस पर नए बर्तन, आभूषण और धातु की वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य का वास होता है।
कथा:
धनतेरस से जुड़ी प्रमुख कथा समुद्र मंथन की है। जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तो उसमें से 14 रत्न निकले। इनमें से 13वें रत्न के रूप में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। यह दिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का था, जिसे धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी किसी प्राणी की आत्मा को लेते समय उन्हें दया आई है। एक दूत ने बताया कि एक नवविवाहित युवक की मृत्यु का आदेश मिला था, लेकिन उसकी पत्नी के करुण विलाप ने उनका हृदय द्रवित कर दिया। इस पर यमराज ने कहा कि जो व्यक्ति धनतेरस की रात यमराज के नाम का दीपक जलाएगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
हम यह पर्व क्यों मनाते हैं:
धनतेरस का पर्व स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु की कामना के लिए मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करके निरोगी जीवन की प्रार्थना की जाती है, जबकि माता लक्ष्मी और कुबेर देव की आराधना से धन-धान्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यमराज के नाम का दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से रक्षा की कामना की जाती है।
पर्व की प्रमुख परंपराएँ:
खरीदारी: इस दिन नए बर्तन, आभूषण और धातु की वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है।
पूजा: शाम को भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा की जाती है।
दीपदान: रात्रि में यमराज के नाम का दीपक घर के दक्षिण दिशा में जलाया जाता है।
सफाई: घर की साफ-सफाई करके उसे सजाया जाता है, ताकि देवी लक्ष्मी का आगमन हो।
पर्व का महत्व:
धनतेरस का पर्व स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु की कामना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह दिन सकारात्मक ऊर्जा, आत्मशुद्धि और नए आरंभ का प्रतीक है। धनतेरस की पूजा और परंपराएं व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य की वृद्धि करती हैं।