परिचय
वाघ बारस, जिसे कुछ क्षेत्रों में गोवत्स द्वादशी भी कहा जाता है, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिवाली के त्योहारों की शुरुआत मानी जाती है और गायों की पूजा तथा ऋणमुक्ति का प्रतीक है।
नाम का अर्थ
“वाघ” का मतलब होता है ऋण (कर्ज) और “बारस” का अर्थ होता है बारहवीं तिथि। यह दिन उन सभी ऋणों को चुकता करने और नए आरंभ के लिए खुद को तैयार करने का प्रतीक है।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में गाय को धन, पोषण और पवित्रता का प्रतीक माना गया है। इस दिन गायों और बछड़ों को स्नान कराकर, सजाकर और पूजन करके उनका सम्मान किया जाता है। माना जाता है कि गाय की पूजा से लक्ष्मी माता प्रसन्न होती हैं।
ऋण चुकाने की परंपरा
गुजरात के व्यापारी वर्ग में इस दिन पुराने लेखा-जोखा समाप्त कर दिया जाता है और नए बहीखाते दिवाली या लाभ पंचमी से शुरू किए जाते हैं। इस दिन कोई नया लेन-देन नहीं किया जाता ताकि ऋण मुक्त होकर समृद्धि की ओर बढ़ा जा सके।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
वाघ बारस केवल आर्थिक अनुशासन का प्रतीक नहीं है, बल्कि आत्मिक शुद्धि और पशुओं के प्रति सम्मान की भावना भी सिखाता है। गाँवों में किसान अपने पशुधन की पूजा करते हैं और उन्हें विशेष भोजन देते हैं।
भारत में उत्सव की झलकियाँ
जहाँ गुजरात में इसे वाघ बारस कहा जाता है, वहीं महाराष्ट्र में इसे गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। यहाँ भी गायों की पूजा होती है और इस दिन दूध या दूध से बने पदार्थों का सेवन नहीं किया जाता।
निष्कर्ष
वाघ बारस दिवाली के शुभ पर्वों की शुरुआत करता है और ऋणमुक्ति, पशु सम्मान तथा आत्मिक स्वच्छता का संदेश देता है। यह दिन नए वर्ष के लिए सकारात्मक संकल्प लेने और भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर है।