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काली चौदश

काली चौदश

पर्व का परिचय:

काली चौदस, जिसे नरक चतुर्दशी, रूप चौदस, या छोटी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, दीपावली महापर्व का दूसरा दिन है। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से दक्षिण भारत, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में देवी काली या महाकाली की पूजा की जाती है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय, आत्मशुद्धि और नकारात्मकता से मुक्ति का प्रतीक है।​
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कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, असुर नरकासुर ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था और 16,100 कन्याओं को बंदी बना लिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर का वध किया और उन कन्याओं को मुक्त कराया। यह घटना कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुई थी, जिसे नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस उपलक्ष्य में दीप जलाकर बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव मनाया जाता है। ​
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हम यह पर्व क्यों मनाते हैं:

काली चौदस का पर्व आत्मशुद्धि, बुराई से मुक्ति और सकारात्मक ऊर्जा के संचार के लिए मनाया जाता है। इस दिन देवी काली की पूजा करके नकारात्मकता, आलस्य और बुरे विचारों से मुक्ति की प्रार्थना की जाती है। यह पर्व हमें आंतरिक और बाह्य रूप से स्वच्छ और शुद्ध होने का संदेश देता है।​

पर्व की प्रमुख परंपराएँ:

अभ्यंग स्नान: प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व तेल लगाकर स्नान करना, जिससे पापों से मुक्ति मिलती है।​
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दीपदान: संध्या के समय यमराज के लिए दीपक जलाना, जिससे अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। ​

देवी काली की पूजा: विशेष रूप से गुजरात और पश्चिम बंगाल में देवी काली की पूजा की जाती है।​

रूप चौदस: कुछ क्षेत्रों में इस दिन को रूप चौदस के रूप में मनाया जाता है, जिसमें सौंदर्य और स्वास्थ्य की कामना की जाती है।​

पर्व का महत्व:

काली चौदस आत्मशुद्धि, बुराई पर अच्छाई की विजय और नकारात्मकता से मुक्ति का पर्व है। इस दिन की पूजा और परंपराएं व्यक्ति को आंतरिक और बाह्य रूप से शुद्ध करने में सहायक होती हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि से ही हम जीवन में सच्ची सफलता और शांति प्राप्त कर सकते हैं।

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