परिचय
श्री गुरु तेग बहादुर जी शहीदी दिवस हर वर्ष 24 नवंबर को मनाया जाता है, जो सिखों के नौवें गुरु के महान बलिदान की स्मृति में मनाया जाता है। उन्होंने 1675 में धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह दिन धार्मिक सहिष्णुता, मानव अधिकारों और आत्मबलिदान का प्रतीक है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल में धार्मिक अत्याचार अत्यधिक बढ़ गए थे। हिंदुओं और गैर-मुस्लिमों पर इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाया जा रहा था। कश्मीरी पंडितों ने इस जबरन धर्मांतरण से बचने के लिए श्री गुरु तेग बहादुर जी से सहायता मांगी।
गुरु जी ने औरंगज़ेब को चुनौती दी:
"पहले मुझे मुसलमान बनाओ, फिर बाकियों को बना लेना।"
यह साहसिक बयान उनकी गिरफ्तारी का कारण बना।
गिरफ्तारी, यातना और शहादत
गुरु जी और उनके तीन शिष्य — भाई मती दास, भाई दयाला, और भाई सती दास — को दिल्ली में कैद कर लिया गया।
उनसे जबरन इस्लाम कबूल करवाने के लिए भयानक यातनाएँ दी गईं:
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भाई मती दास को सिर से लेकर कमर तक आरी से चीर दिया गया, वे लगातार जपजी साहिब का पाठ करते रहे।
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भाई दयाला को खौलते पानी में जीवित उबाल दिया गया।
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भाई सती दास को कपास में लपेटकर जिंदा जला दिया गया।
गुरु जी ने यह सब अपनी आंखों के सामने होते देखा, फिर भी उनके मन में डर नहीं आया और वे अपने धर्म और सिद्धांतों पर अडिग रहे।
24 नवंबर 1675 को चांदनी चौक, दिल्ली में गुरु जी का सिर कलम कर दिया गया।
उनका सिर (सीस) भाई जैता जी द्वारा गुप्त रूप से आनंदपुर साहिब पहुँचाया गया और उनका शरीर भाई लखी शाह वंजारा ने अपने घर को जलाकर अग्नि संस्कार किया। इन स्थलों पर आज गुरुद्वारा सीस गंज साहिब और गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब बने हुए हैं।
दर्शन और शिक्षाएँ
गुरु जी का संदेश था:
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सभी को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए
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दया, समानता, और सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए
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भौतिक संसार से वैराग्य और साहसिक आत्मबल बनाए रखना चाहिए
उन्होंने मानवता और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। वे खालसा पंथ की नींव तैयार करने वाले महान मार्गदर्शक थे।
विरासत और स्मरण
गुरु जी की शहादत एक ऐसा ऐतिहासिक बलिदान है जहाँ किसी ने अपने धर्म के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के धर्म की रक्षा के लिए प्राण दिए।
इसलिए उन्हें "हिंद की चादर" कहा जाता है — "भारत की ढाल"।
आज भी, गुरुद्वारा सीस गंज साहिब और रकाब गंज साहिब उनकी अमर गाथा को संजोए हुए हैं। दुनियाभर में सिख श्रद्धालु सेवा, प्रार्थना और आत्मचिंतन से गुरु जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
अनुष्ठान और आयोजन
इस पावन दिन:
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गुरुद्वारों में कीर्तन, अरदास और लंगर का आयोजन होता है
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नगर कीर्तन और धार्मिक प्रवचन आयोजित किए जाते हैं
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गुरु जी के बलिदान और संदेशों पर मनन किया जाता है
निष्कर्ष
श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत न केवल सिखों के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय की प्रेरणा है। उनका जीवन साहस, बलिदान और सत्य की विजय की मिसाल है।




