पर्व का परिचय
देव दीपावली, जिसे "देवों की दीपावली" कहा जाता है, कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से वाराणसी (काशी) में गंगा नदी के घाटों पर भव्यता से मनाया जाता है। इस दिन गंगा घाटों को लाखों दीपों से सजाया जाता है, जिससे सम्पूर्ण क्षेत्र आलोकित हो उठता है।
कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। देवताओं ने भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध किया और "त्रिपुरारि" कहलाए। इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने दीप जलाकर उत्सव मनाया, जिसे "देव दीपावली" कहा गया।
पर्व का महत्व
देव दीपावली का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह दिन धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवसर पर गंगा नदी की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाता है, जिससे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
प्रमुख परंपराएँ
दीपदान: गंगा घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं, जिससे सम्पूर्ण क्षेत्र प्रकाशमय हो उठता है।
गंगा आरती: विशेष रूप से दशाश्वमेध घाट पर भव्य गंगा आरती का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम: वाराणसी में इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें संगीत, नृत्य और अन्य कलात्मक प्रस्तुतियाँ होती हैं।
पर्व का महत्व
देव दीपावली का पर्व आध्यात्मिक जागरूकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि अंधकार चाहे जितना भी गहरा हो, एक दीपक की रोशनी उसे दूर कर सकती है। यह दिन हमें आत्मचिंतन और आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देता है।




