गुड़ी पड़वा का परिचय
गुड़ी पड़वा हिन्दू नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक पर्व है, जिसे मुख्यतः महाराष्ट्र, गोवा और कोंकण क्षेत्र में चैत शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है। यह दिन ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना और भगवान राम के अयोध्या आगमन से जुड़ा माना जाता है।
इतिहास और परंपरा
मान्यता है कि इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी और श्रीराम ने लंका विजय के बाद अयोध्या में प्रवेश किया था। गुड़ी को विजय और शुभता का प्रतीक मानते हैं, जिसे घर के बाहर ऊँचाई पर स्थापित किया जाता है।
गुड़ी स्थापना की विधि
गुड़ी एक लंबी लकड़ी पर रेशमी कपड़ा, आम के पत्ते, फूल, कलश और नारियल से सजाई जाती है। इसे मुख्य द्वार या बालकनी में ऊँचाई पर लगाया जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करती है और समृद्धि लाती है।
उत्सव की परंपराएँ
लोग नए वस्त्र पहनते हैं, घरों की सफाई करते हैं, पूरनपोली, श्रीखंड जैसे व्यंजन बनाते हैं, और गुड़ी की पूजा करते हैं। परिवार मिलकर यह पर्व खुशी और उत्साह से मनाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गुड़ी पड़वा केवल नववर्ष नहीं बल्कि एक सकारात्मक जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। यह पर्व नई ऊर्जा, उत्साह और समृद्धि के स्वागत का दिन है।




