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स्वामिनारायण जयंती

परिचय
स्वामिनारायण जयंती हर वर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान स्वामिनारायण की जयंती के रूप में मनाई जाती है। यह दिन भक्तों के लिए भगवान के जीवन, शिक्षाओं और आदर्शों को स्मरण करने का अवसर है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन
भगवान स्वामिनारायण का जन्म 1781 में उत्तर प्रदेश के छपैया गांव में धर्मदेव और भक्तमाता के घर हुआ था। उनका बाल्य नाम घनश्याम था। बचपन से ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे और साधु-संतों के संपर्क में रहते थे।

नीलकंठ वर्णी की यात्रा
घनश्याम जी ने मात्र 11 वर्ष की आयु में गृहत्याग कर नीलकंठ वर्णी के रूप में भारत की यात्रा शुरू की। इस यात्रा में उन्होंने हिमालय, नेपाल, बंगाल, दक्षिण भारत आदि स्थानों का भ्रमण कर आध्यात्मिक ज्ञान और धर्म का प्रचार किया।

संप्रदाय की स्थापना और कार्य
गुजरात पहुँचने के बाद उन्होंने स्वामिनारायण संप्रदाय की स्थापना की। उन्होंने नैतिकता, सत्य, अहिंसा, सेवा और संयम की शिक्षा दी। उनके प्रवचनों और कार्यों ने समाज में जागृति फैलाई और हज़ारों लोगों का जीवन बदला।

जयंती की विशेषता और उत्सव
इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा, आरती, कीर्तन, उपवास और प्रवचन होते हैं। भक्त भगवान के जीवन की लीलाओं का पाठ करते हैं और शोभायात्राएं निकालते हैं। कई भक्त उपवास रखते हैं और संकल्प लेते हैं।

जीवन से प्रेरणा
भगवान स्वामिनारायण ने एक शुद्ध, अनुशासित और सेवा प्रधान जीवन जीकर यह सिखाया कि हर व्यक्ति अपने जीवन को ईश्वरमय बना सकता है।

 

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