पापमोचनी एकादशी का परिचय
पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह एकादशी विशेष रूप से पापों के नाश और आत्मिक शुद्धि के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखकर भक्ति भाव से आराधना की जाती है।
पौराणिक कथा और मान्यता
कथा के अनुसार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी अप्सरा मणिग्रीवा के प्रेम में फंसकर तपस्या भंग करता है और पाप का भागी बनता है। नारद मुनि के कहने पर उसने पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा और अपने सारे पापों से मुक्त हुआ।
एकादशी का धार्मिक महत्व
इस एकादशी का व्रत विशेष रूप से पूर्व जन्म के पाप, इच्छाओं की कमजोरी और मानसिक अशुद्धता से छुटकारा दिलाने के लिए मनाया जाता है। यह आत्मा की शुद्धि का पर्व है।
व्रत विधि और परंपराएं
इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, फलाहार करते हैं या जल तक नहीं पीते। विष्णु सहस्रनाम का पाठ, मंत्र जप और रात्रि जागरण करते हैं। मंदिरों में भजन-कीर्तन और भगवान विष्णु की आरती होती है।
आध्यात्मिक लाभ और मोक्ष का मार्ग
पापमोचनी एकादशी से आत्मा की पवित्रता बढ़ती है, जीवन में शांति आती है और पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत मोक्ष प्राप्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।




