परिचय
निर्जला उपवास हिंदू धर्म का एक अत्यंत कठिन उपवास है, जिसमें अन्न के साथ-साथ जल का सेवन भी वर्जित होता है। इसे आत्मशुद्धि, संयम और पूर्ण समर्पण का प्रतीक माना जाता है। विशेष रूप से निर्जला एकादशी इस उपवास का मुख्य अवसर है।
नाम का अर्थ और उपवास का स्वरूप
‘निर्जला’ का अर्थ है ‘बिना जल के’। इस दिन उपवासी व्यक्ति अन्न, जल, फल—सबका त्याग करता है और केवल प्रभु का नाम स्मरण करता है।
धार्मिक महत्व और मान्यताएं
शास्त्रों में वर्णित है कि निर्जला उपवास करने से हजारों यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है। यह उपवास इंद्रियों पर नियंत्रण और आत्मशुद्धि का माध्यम माना जाता है।
निर्जला एकादशी की कथा
निर्जला एकादशी की कथा महाभारत के पात्र भीमसेन से जुड़ी है, जो उपवास नहीं रख सकते थे। ऋषि वेदव्यास ने उन्हें एक ही दिन निर्जल उपवास रखने का सुझाव दिया, जिससे सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो सके।
उपवास की विधि
भक्त एक दिन पहले हल्का भोजन करते हैं, और एकादशी के दिन जल भी नहीं पीते। दिनभर भजन, ध्यान और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। द्वादशी के दिन पारण किया जाता है।
आधुनिक समय में प्रासंगिकता
आज भी अनेक लोग इस उपवास को रखकर आत्मसंयम, मानसिक शुद्धता और भक्ति का अनुभव करते हैं। लेकिन शरीर की स्थिति अनुसार सावधानी बरतना आवश्यक है।
निष्कर्ष
निर्जला उपवास केवल त्याग नहीं, बल्कि संपूर्ण आत्मनियंत्रण और ईश्वर भक्ति का प्रतीक है। यह उपवास मन, शरीर और आत्मा को एक नई ऊर्जा प्रदान करता है।




