परिचय
द्वितीया श्राद्ध पितृपक्ष का दूसरा दिन है, जो भाद्रपद/आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन उन पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन द्वितीया तिथि को हुआ हो।
महत्व और उद्देश्य
इस दिन पितरों को तर्पण, पिंडदान और अन्नदान करके उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार पर आशीर्वाद बरसता है।
मुख्य विधियाँ और दान
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तर्पण: तिल, जौ और कुश से जल अर्पित करना।
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पिंडदान: चावल के पिंड अर्पित करना।
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कौवे को अन्न देना।
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ब्राह्मण या गाय को भोजन।
मृतक के पसंदीदा भोजन बनाकर अर्पित करने के बाद परिवारजन उसका प्रसाद लेते हैं।
धार्मिक मान्यताएँ
गरुड़ पुराण और मत्स्य पुराण के अनुसार, श्राद्ध से पितृ आत्माओं को शक्ति मिलती है। श्राद्ध न करने पर परिवार में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
निष्कर्ष
द्वितीया श्राद्ध पितरों के प्रति श्रद्धा दर्शाने का दिन है। इसे जीवन में संतुलन और परिवार में कल्याण के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है।




