परिचय
अष्टमी श्राद्ध पितृपक्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है जिनकी मृत्यु इसी तिथि को हुई थी।
धार्मिक महत्व
शास्त्रों में बताया गया है कि पितरों को प्रसन्न करना जीवन में सफलता और सुख-शांति के द्वार खोलता है। सही तिथि पर श्राद्ध करने से पितृदोष समाप्त होता है और आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मुख्य विधियाँ
अष्टमी श्राद्ध पर निम्नलिखित प्रमुख विधियाँ की जाती हैं:
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तर्पण: तिल, जल, कुशा और जौ के साथ जल अर्पण किया जाता है।
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पिंडदान: चावल, तिल और घी से बने पिंड अर्पित किए जाते हैं।
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गाय, कुत्ता और कौवे को भोजन देना आवश्यक होता है।
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ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दी जाती है।
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गरीबों को अनाज, वस्त्र और अन्य चीजें दान में दी जाती हैं।
शास्त्रीय प्रमाण
गरुड़ पुराण और मनुस्मृति जैसे शास्त्रों में श्राद्ध के महत्व और विधियों का विस्तृत वर्णन है। यह पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के साथ-साथ परिवार की उन्नति के लिए आवश्यक माना गया है।
सांस्कृतिक पहलू
यह परंपरा भारतीय समाज में आज भी जीवंत है। कई परिवार इस दिन को पवित्र मानकर पूरे विधि-विधान से श्राद्ध करते हैं।
निष्कर्ष
अष्टमी श्राद्ध न केवल एक धार्मिक कर्म है, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति आदर, श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है।




