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अक्षरब्रह्म गुणातीतानंद स्वामी जयंती

परिचय
अक्षरब्रह्म गुणातीतानंद स्वामी जयंती शरद पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। यह दिन भगवान स्वामीनारायण के प्रथम आध्यात्मिक उत्तराधिकारी और अक्षरब्रह्म के अवतार माने जाने वाले गुणातीतानंद स्वामी के जन्म की स्मृति है।

प्रारंभिक जीवन
गुणातीतानंद स्वामी का जन्म 17 अक्टूबर 1785 को गुजरात के भद्रा गांव में मूलजी शर्मा के रूप में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने विरक्ति, भक्ति और आत्मज्ञान का परिचय दिया। भगवान स्वामीनारायण ने स्वयं उन्हें संन्यास दीक्षा देकर 'गुणातीतानंद स्वामी' नाम दिया।

आध्यात्मिक महत्व
स्वामीनारायण परंपरा में अक्षरब्रह्म को परमात्मा का शाश्वत धाम और श्रेष्ठ भक्त माना जाता है। गुणातीतानंद स्वामी इस अक्षरब्रह्म के साक्षात स्वरूप थे, जिन्होंने संसार को मोक्षमार्ग दिखाने हेतु अवतार लिया।

उपदेश और विरासत
गुणातीतानंद स्वामी ने जूनागढ़ मंदिर के महंत के रूप में 40 वर्षों तक सेवा की। उनके प्रवचनों का संकलन “स्वामीनी वातो” आज भी लाखों भक्तों को आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

उत्सव और आयोजन
उनकी जयंती के दिन स्वामीनारायण मंदिरों में भक्ति गीत, कीर्तन, प्रवचन और सेवा कार्यों के आयोजन होते हैं। भक्ति सभाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

आज का महत्व
गुणातीतानंद स्वामी के उपदेश आज भी समाज और व्यक्तियों को सेवा, भक्ति और आत्मविकास की दिशा में प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष
अक्षरब्रह्म गुणातीतानंद स्वामी जयंती हमें आध्यात्मिक जीवन जीने, निःस्वार्थ सेवा करने और ईश्वर से जुड़े रहने की प्रेरणा देती है।

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