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संकट चतुर्थी

यह व्रत श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इस दिन व्रती को प्रातःकाल स्नान कर गणपति बाप्पा की मूर्ति की स्थापना कर पूजन करना चाहिए। पूजन में स्तुति, प्रार्थना, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें। रात्रि में भजन-कीर्तन करें और भगवान से प्रार्थना करें कि वे सारे संकटों का निवारण करें, सुख-शांति दें और कल्याण करें।

व्रत कथा

प्राचीन काल में चंद्रसेन नाम के एक धर्मप्रिय राजा थे। उनकी रानी का नाम चंद्रावली था। राजा-रानी दोनों अत्यंत दयालु और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे ईश्वर भक्ति और दान-पुण्य में लीन रहते थे। उनका जीवन अत्यंत सुखदायी था।

परंतु जैसे कहते हैं "धर्म के घर में भी कभी-कभी दुःख आ जाता है", ऐसा ही उनके साथ हुआ। पड़ोसी राजा से उनके अच्छे संबंध होने के बावजूद वह राजा लालच में आकर चंद्रसेन के राज्य पर चढ़ आया और चंद्रसेन का राज्य हड़प लिया।

राजा-रानी इस अचानक हुए आक्रमण से घबरा गए और महल के एक गुप्त रास्ते से भागकर जंगल में चले गए। जहाँ पहले वे राजमहलों में रहते थे, वहाँ अब उन्हें झोंपड़ी बनाकर जीवन यापन करना पड़ा। समय का खेल ऐसा ही होता है—एक पल राजा, दूसरे पल रंक।

हालांकि वे अब वन में रहते थे, परंतु उनका आतिथ्य सत्कार और धर्म में विश्वास नहीं डगमगाया। वे अब झोंपड़ी में रहकर भी संतुष्ट और भक्तिभाव से जीवन व्यतीत करने लगे।

एक दिन उनके आश्रय में मार्कंडेय मुनि पधारे। राजा और रानी ने उनका विनम्र स्वागत किया, फलाहार करवाया और अपनी दुःखद स्थिति बताते हुए समाधान माँगा।

मार्कंडेय मुनि ने कहा:
“राजन! आप श्रावण कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ‘संकटनाशक व्रत’ करें। इस व्रत से आपके सारे कष्ट दूर होंगे और आपको पुनः अपना राज्य प्राप्त होगा।”

राजा ने श्रद्धापूर्वक कहा:
“मुनिवर, कृपया व्रत की विधि बताइए।”

मुनि बोले:
“इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें और श्री गणेश जी की स्थापना करें। लाल फूलों से पूजन करें, धूप-दीप अर्पित करें, नैवेद्य में लड्डू या गुड़ चढ़ाएं। रात्रि में चंद्र दर्शन करके भगवान गणेश की स्तुति-प्रार्थना करें और व्रत पूर्ण करें। इस व्रत से सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं।”

राजा चंद्रसेन और रानी चंद्रावली ने हर माह कृष्ण चतुर्थी को यह व्रत करना आरंभ किया। शीघ्र ही व्रत के प्रभाव और अपने पराक्रम से राजा ने पुनः अपना राज्य प्राप्त कर लिया। इसके बाद राजा-रानी ने बड़ी श्रद्धा और उल्लास से इस व्रत को मनाना आरंभ किया और वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया।

हे गणपति बाप्पा! जैसे आपने चंद्रसेन और चंद्रावली को व्रत का फल दिया, वैसे ही इस व्रत को करने वाले प्रत्येक भक्त को भी कृपा प्रदान करें।