भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। इस दिन उपवास कर भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र ने इसी व्रत को करके अपना खोया हुआ राज्य और परिवार पुनः प्राप्त किया था।
कहा जाता है कि जो भी मनोकामना लेकर यह व्रत किया जाता है, वह तत्काल पूर्ण होती है। इस व्रत में भगवान विष्णु के उपेन्द्र स्वरूप की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। पंडितों के अनुसार, इस बार अजा एकादशी और वत्स द्वादशी का योग 18 अगस्त को बन रहा है। इस दिन गाय और बछड़े की पूजा करनी चाहिए और उन्हें गुड़ व घास खिलाना चाहिए, जो भगवान को प्रिय है।
पूजा और व्रत विधि:
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दशमी के दिन (एकादशी से एक दिन पहले): केवल सात्विक भोजन ग्रहण करें, ताकि व्रत के दौरान मन शुद्ध बना रहे।
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एकादशी के दिन प्रातःकाल: सूर्योदय से पहले स्नान कर घी का दीपक जलाएं और भगवान विष्णु को फूल और फल अर्पित करें।
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पूजा के पश्चात विष्णु सहस्रनाम का पाठ या श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करें।
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व्रती को दिनभर निर्जल और निराहार रहना चाहिए, लेकिन बीमार, वृद्ध और बच्चे फलाहार कर सकते हैं।
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सामान्य स्थिति में, रात्रि में भगवान की पूजा के बाद ही जल और फल ग्रहण करें। रात्रि जागरण का विशेष महत्व है।
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द्वादशी के दिन (व्रत का पारण): ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें। ध्यान रखें कि द्वादशी के दिन बैंगन का सेवन न करें।
इस व्रत को श्रद्धा से करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
अजा एकादशी व्रत कथा
कुंतीपुत्र युधिष्ठिर बोले:
"हे जनार्दन! अब आप मुझे श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में बताइए। इस एकादशी का नाम क्या है और इसकी विधि क्या है, कृपया विस्तार से बताएं।"
भगवान श्रीकृष्ण बोले: "हे राजन्! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की जो एकादशी होती है, उसे अजा एकादशी कहते हैं। इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु की भक्ति पूर्वक पूजा करता है और व्रत करता है, उसके सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। यह एकादशी इस लोक और परलोक में सहायता करने वाली है। इसके समान कोई दूसरी एकादशी नहीं है। अब मैं इसकी कथा सुनाता हूँ।
प्राचीन काल में हरिश्चंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। वह अत्यंत पराक्रमी, सत्यवादी और धर्मनिष्ठ था। विपरीत परिस्थितियों में उसने अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया और स्वयं एक चांडाल का सेवक बन गया। वह श्मशान में मृतकों से कफ़न लेने का कार्य करता था। लेकिन उसने कठिन समय में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा।
जब कई वर्ष इसी स्थिति में बीत गए, तो राजा को अपने कर्म पर अत्यंत दुःख हुआ। वह इस अवस्था से मुक्ति पाने का उपाय खोजने लगे। हमेशा चिंता में डूबे रहते थे। एक दिन उन्हें गौतम ऋषि मिले। राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपना दुःख सुनाया।
गौतम ऋषि बोले: "हे राजन! यदि आप श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेंगे, तो आपके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे।"
जब अजा एकादशी आई, तो राजा ने ऋषि की बातों के अनुसार व्रत किया और रात्रि जागरण भी किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए। उन्होंने देखा कि ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, महादेव आदि देवता उनके सामने खड़े हैं।
राजा ने अपने मृत पुत्र को जीवित अवस्था में और अपनी पत्नी को वस्त्र और आभूषणों से युक्त देखा। व्रत के प्रभाव से उन्हें पुनः राज्य भी प्राप्त हुआ और अंत में वे अपने परिवार सहित स्वर्गलोक को प्राप्त हुए।
अजा एकादशी व्रत का फल:
पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक अजा एकादशी का व्रत करता है, उसके पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं और इस जन्म में उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इस व्रत का पुण्य अश्वमेध यज्ञ के समान माना गया है और मृत्यु के पश्चात व्यक्ति को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।