परिचय
योगिनी एकादशी आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह व्रत पापों से मुक्ति और आत्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत करने से स्वास्थ्य, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
योगिनी एकादशी की कथा
पद्म पुराण के अनुसार, हेमा नामक माली भगवान कुबेर के लिए मानसरोवर से फूल लाता था। एक दिन उसने सेवा में लापरवाही की और अपनी पत्नी के पास लौट गया। कुबेर ने क्रोधित होकर उसे कोढ़ जैसी बीमारी का श्राप दिया। वन में भटकते समय उसे ऋषि मार्कंडेय ने योगिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। इस व्रत से उसे रोगों से मुक्ति और पापों का नाश हुआ।
यह व्रत क्यों रखा जाता है
यह व्रत उन पापों से छुटकारा दिलाने वाला माना गया है जो जानबूझकर या अनजाने में किए जाते हैं। कहा जाता है कि इस व्रत का फल 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर होता है। विशेष रूप से त्वचा रोगों से छुटकारा पाने के लिए यह एकादशी शुभ मानी जाती है।
मुख्य अनुष्ठान और व्रत विधि
भक्त पूरे दिन उपवास करते हैं, कई बार जल भी नहीं लेते। भगवान विष्णु की पूजा, सहस्त्रनाम का पाठ, भजन-कीर्तन आदि करते हैं। इस दिन अनाज और तामसिक भोजन नहीं खाया जाता।
आध्यात्मिक महत्व
योगिनी एकादशी आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम है। यह व्रत संयम, तप और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना को सशक्त करता है।
निष्कर्ष
योगिनी एकादशी जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने, पापों से मुक्ति पाने और ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का एक श्रेष्ठ अवसर है। यह व्रत आस्था और श्रद्धा से किया जाए तो अत्यंत फलदायी होता है।