त्योहार का परिचय:
व्यास पूर्णिमा, जिसे गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह दिन महर्षि वेदव्यास को समर्पित है, जिन्होंने वेदों का संकलन, महाभारत की रचना और पुराणों की रचना की। उन्हें आदि गुरु माना जाता है। यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान करने और अपने गुरुजनों के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है।
व्यास पूर्णिमा की कथा:
महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था। वे भारतीय ज्ञान परंपरा के एक स्तंभ माने जाते हैं। वेदों को संकलित करना, महाभारत और 18 पुराणों की रचना करना उनका अद्वितीय योगदान है। वैदिक संस्कृति में वे दिव्य ज्ञान के स्वरूप माने जाते हैं।
योग परंपरा में यह दिन शिवजी द्वारा सप्तऋषियों को प्रथम ज्ञान प्रदान करने की स्मृति में भी मनाया जाता है।
इस पर्व को क्यों मनाते हैं:
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अपने जीवन में गुरु के योगदान को सम्मान देने के लिए।
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महर्षि वेदव्यास की स्मृति और योगदान को नमन करने के लिए।
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ज्ञान, अनुशासन और भक्ति के महत्व को समझने और अपनाने के लिए।
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विनम्रता और आभार की भावना को सुदृढ़ करने के लिए।
व्यास पूर्णिमा की प्रमुख परंपराएं:
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प्रातः स्नान और पूजन:
लोग स्नान कर मंदिर या आश्रम जाते हैं। -
गुरु पूजन / व्यास पूजा:
गुरुओं को पुष्प, फल, वस्त्र आदि अर्पण कर पूजा करते हैं। -
धार्मिक ग्रंथों का पाठ:
भगवद गीता, महाभारत, उपनिषद आदि का अध्ययन। -
गुरु को प्रणाम और आशीर्वाद:
विद्यार्थी अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं। -
सत्संग और प्रवचन:
आश्रमों में भजन, कीर्तन और गुरु की महिमा पर प्रवचन होते हैं।
पर्व का आध्यात्मिक महत्व:
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ज्ञान का प्रतीक: वेदव्यास दिव्य ज्ञान के स्रोत हैं।
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आध्यात्मिक जागृति: यह दिन आत्ममंथन और साधना की प्रेरणा देता है।
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संस्कृति की धरोहर: गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय अध्यात्म की नींव है।
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सर्वमान्य संदेश: विनम्रता, शिक्षा और गुरुभक्ति सार्वकालिक मूल्य हैं।