परिचय
वटसावित्री व्रत पूर्णिमा हिन्दू महिलाओं का एक प्रमुख व्रत है, जो अपने पति की लंबी उम्र और कल्याण के लिए रखा जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को किया जाता है और वटवृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा की जाती है।
सावित्री और सत्यवान की कथा
इस व्रत की कथा पौराणिक पात्र सावित्री और सत्यवान से जुड़ी है। जब सत्यवान की अकाल मृत्यु होती है, तब सावित्री ने अपने तप, भक्ति और साहस से यमराज से उन्हें पुनः जीवित करवाया। इसलिए इस व्रत को पतिव्रता स्त्रियों के लिए अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है।
वटवृक्ष का महत्व
वटवृक्ष को हिन्दू धर्म में अमरता का प्रतीक माना जाता है। यह भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वासस्थान भी माना जाता है। व्रत करने वाली महिलाएँ इस वृक्ष के चारों ओर धागा लपेटकर उसकी पूजा करती हैं।
व्रत विधि
प्रातःकाल स्नान कर महिलाएं वटवृक्ष के नीचे जाकर हल्दी, रोली, चावल, पुष्प, और फल अर्पित करती हैं। वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेटा जाता है और सावित्री-व्रत कथा का श्रवण किया जाता है। महिलाएं उपवास करती हैं और पति के दीर्घायु की कामना करती हैं।
आध्यात्मिक महत्व
यह व्रत नारी के समर्पण, श्रद्धा और अपने पति के प्रति प्रेम को दर्शाता है। यह विवाह के रिश्ते को और मजबूत बनाता है और धार्मिक भावनाओं को जाग्रत करता है।




