मुख्य सामग्री पर जाएं
ToranToran

वट सावित्री व्रत आरंभ

वट सावित्री व्रत

वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर इसकी शुरुआत ज्येष्ठ शुक्ल तेरस से भी मानी जाती है और व्रती महिलाएँ पूर्णमासी तक इसका पालन करती हैं। यह व्रत खास तौर पर उत्तर भारत, बिहार, उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र में श्रद्धा और आस्था से मनाया जाता है।

पर्व के पीछे की कथा

वट सावित्री व्रत की कथा महाभारत में वर्णित है। इसके अनुसार, सावित्री एक अत्यंत सती और बुद्धिमान स्त्री थीं, जिन्होंने सत्यवान नामक युवक से विवाह किया। विवाह के कुछ समय बाद ही ऋषि-मुनियों द्वारा बताया गया कि सत्यवान की मृत्यु निश्चित है। सावित्री ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए कठोर तप किया।

जिस दिन यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए, उस दिन सावित्री भी वन में उनके साथ गईं। यमराज जब उनके पति की आत्मा को लेकर जाने लगे, तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगीं। उसकी भक्ति, ज्ञान और विनम्रता से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने चतुराई से ऐसे वरदान मांगे, जिससे अंत में यमराज को सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े।

यह कथा पतिव्रता धर्म, भक्ति और नारी शक्ति का अद्भुत उदाहरण मानी जाती है।

हम वट सावित्री व्रत क्यों मनाते हैं

यह व्रत नारी की शक्ति, समर्पण और पति के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। सावित्री ने अपने तप और भक्ति से मृत्यु को भी पराजित कर दिया। इसलिए विवाहित महिलाएँ यह व्रत करके अपने पति की दीर्घायु, समृद्धि और सुखद जीवन की कामना करती हैं।

व्रत की प्रमुख परंपराएँ

इस दिन विवाहित महिलाएँ उपवास रखती हैं और प्रातः स्नान कर नए वस्त्र और श्रृंगार करती हैं। फिर वे वट (बरगद) वृक्ष के नीचे जाकर उसकी पूजा करती हैं। वट वृक्ष को जल अर्पित किया जाता है, रोली, चावल, फूल, और कच्चे धागे से पूजा की जाती है। महिलाएँ वट वृक्ष की 7 या 108 बार परिक्रमा करती हैं और व्रत कथा सुनती हैं।

इसके बाद वे अपने पति के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं और उन्हें मिठाई व वस्त्र आदि अर्पित करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए शुभ माना जाता है।

वट सावित्री व्रत का महत्व

यह व्रत आस्था, संयम, और सच्चे प्रेम का प्रतीक है। यह हमें सावित्री जैसी पतिव्रता स्त्री की भक्ति और धैर्य से प्रेरणा देता है। यह व्रत न केवल वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाता है बल्कि स्त्री की आध्यात्मिक शक्ति और निष्ठा का भी सम्मान करता है। वट वृक्ष की पूजा करने से सुख, शांति और परिवार में समृद्धि आती है।

 

हमारे साप्ताहिक समाचार पत्र के साथ अद्यतन रहें

नवीनतम अपडेट, टिप्स और विशेष सामग्री सीधे अपने इनबॉक्स में प्राप्त करें।