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परिचय
शारदा पूजन, जिसे सरस्वती पूजन भी कहा जाता है, विशेष रूप से गुजरात और पश्चिमी भारत में दिवाली के दिन मनाया जाता है। यह पूजा ज्ञान, बुद्धि और कला की देवी माँ सरस्वती को समर्पित होती है। इस दिन किताबें, पेन, खाता-बही और शिक्षा संबंधी वस्तुओं की पूजा की जाती है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
शारदा पूजन अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करने से बुद्धि और एकाग्रता बढ़ती है तथा सफलता प्राप्त होती है।

दिवाली पर क्यों मनाते हैं
जहाँ अधिकतर लोग दिवाली पर लक्ष्मी पूजन करते हैं, वहीं गुजरात में लक्ष्मी के साथ-साथ सरस्वती माता की पूजा भी होती है जिससे धन और ज्ञान दोनों का आशीर्वाद मिलता है। व्यापारी इस दिन चोपड़ा पूजन करके नया वित्तीय वर्ष शुरू करते हैं।

मुख्य विधियाँ और आयोजन
घर और पूजा स्थल को साफ कर रंगोली और दीपों से सजाया जाता है।
पुस्तकें, लेखन सामग्री और खाता-बही पूजा स्थान पर रखी जाती हैं।
सरस्वती माता की मूर्ति को फूल और चंदन से सजाया जाता है।
सरस्वती वंदना और मंत्रों का पाठ किया जाता है।
विद्यालयों में आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

चोपड़ा पूजन से संबंध
गुजरात में व्यापारी शुभ-लाभ और ऋद्धि-सिद्धि लिखकर चोपड़ा पूजन करते हैं और इसे आर्थिक वर्ष की शुभ शुरुआत मानते हैं।

विद्यार्थियों और पेशेवरों के लिए महत्व
यह दिन छात्रों, कलाकारों, शिक्षकों और लेखकों के लिए विशेष होता है, जो ज्ञान और नया आरंभ दर्शाता है।

निष्कर्ष
शारदा पूजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता और आत्मिक प्रकाश प्राप्त करने का एक साधन है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची समृद्धि ज्ञान से आती है।

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