पर्व का परिचय:
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा या कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से चंद्रमा की 16 कलाओं से पूर्णता और उसकी अमृतमयी किरणों के कारण महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा की जाती है, और रात्रि में खीर को चांदनी में रखकर उसका सेवन किया जाता है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए शुभ माना जाता है।
कथा:
एक नगर में एक साहूकार की दो पुत्रियाँ थीं। दोनों पूर्णिमा का व्रत करती थीं, लेकिन बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी, जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। परिणामस्वरूप, छोटी पुत्री की संतानें जन्म लेते ही मर जाती थीं। एक दिन उसने पंडितों से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि अधूरा व्रत करने के कारण उसकी संतानें जीवित नहीं रहतीं। पंडितों की सलाह पर उसने विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत किया।
कुछ समय बाद उसे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसने बच्चे को पीढ़े पर लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढक दिया और अपनी बड़ी बहन को बुलाकर वही पीढ़ा बैठने को कहा। जब बड़ी बहन बैठने लगी, तो उसका वस्त्र बच्चे से छू गया, और बच्चा रोने लगा। बड़ी बहन ने सोचा कि छोटी बहन उसे कलंकित करना चाहती थी, लेकिन छोटी बहन ने बताया कि बच्चा पहले से मरा हुआ था और उसके पुण्य से ही जीवित हुआ है। इस घटना के बाद नगर में पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक करने की परंपरा शुरू हुई।
हम यह पर्व क्यों मनाते हैं:
शरद पूर्णिमा का पर्व चंद्रमा की पूर्णता और उसकी अमृतमयी किरणों के कारण मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा करके धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति की कामना की जाती है। यह पर्व व्रत, भक्ति और आत्मशुद्धि का प्रतीक है।
पर्व की प्रमुख परंपराएँ:
व्रत और पूजा: इस दिन व्रत रखकर माता लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा की जाती है।
खीर बनाना: गाय के दूध से बनी खीर को रात्रि में चांदनी में रखा जाता है और अगले दिन उसका सेवन किया जाता है।
चंद्रमा को अर्घ्य: रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है।
रासलीला: कुछ स्थानों पर भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला का आयोजन किया जाता है।
पर्व का महत्व:
शरद पूर्णिमा का पर्व चंद्रमा की पूर्णता और उसकी अमृतमयी किरणों के कारण स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करके व्यक्ति अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करता है। यह पर्व आत्मशुद्धि, भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।