प्रगट्योत्सव का परिचय:
प्रमुख स्वामी महाराज का जन्म 7 दिसंबर 1921 को गुजरात के चांसद गाँव में हुआ था। वे BAPS संस्था के पाँचवें आध्यात्मिक गुरु थे और अपने जीवनभर मानव सेवा व आध्यात्मिक जागृति के लिए समर्पित रहे। उनके जन्मदिवस को "प्रगट्योत्सव" के रूप में मनाया जाता है।
जीवन के मुख्य पहलू:
उन्होंने 1,100 से अधिक मंदिरों का निर्माण करवाया, लाखों लोगों को आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलाया और विनम्रता, सेवा तथा करुणा का जीवंत उदाहरण बने। उनका जीवन सादगी, समर्पण और दिव्यता का प्रतीक था।
प्रगट्योत्सव कैसे मनाया जाता है:
इस दिन BAPS के मंदिरों में भजन, प्रवचन, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और सेवा कार्य किए जाते हैं। भक्त उनके आदर्शों का स्मरण करते हुए समाजसेवा व आत्मशुद्धि की प्रतिज्ञा लेते हैं।
प्रमुख स्वामी की विरासत:
उनका मंत्र "सेवा ही धर्म है" आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है। उनकी आध्यात्मिक दृष्टि और वैज्ञानिक सोच ने भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाई।
निष्कर्ष:
प्रमुख स्वामी महाराज का प्रगट्योत्सव न केवल उनका जन्मदिन है, बल्कि यह हमें सेवा, भक्ति और आध्यात्मिक मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है।