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पाशांकुशा एकादशी

परिचय
पाशांकुशा एकादशी अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसे पापांकुशा एकादशी भी कहा जाता है। यह दिन भगवान विष्णु, विशेष रूप से उनके पद्मनाभ स्वरूप की उपासना के लिए समर्पित है। भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

नाम का महत्व
"पाशांकुशा" दो शब्दों से मिलकर बना है—पाश (बंधन) और अंकुश (नियंत्रण का औजार)। इसका तात्पर्य है कि भगवान विष्णु पाप के बंधनों से मुक्ति दिलाते हैं और धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ाते हैं।

पौराणिक कथा
ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताया था। एक कथा के अनुसार, क्रोधन नामक एक शिकारी ने अनजाने में इस एकादशी का व्रत किया और अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त किया।

क्यों मनाई जाती है
यह एकादशी आत्मशुद्धि, मोह-माया से मुक्ति और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को रखने से केवल व्यक्ति ही नहीं, बल्कि उसके पितृगण भी मोक्ष प्राप्त करते हैं।

मुख्य नियम और विधियाँ

  • उपवास रखना – निर्जला या फलाहार।

  • विष्णु सहस्रनाम और भजन-कीर्तन करना।

  • तुलसी पत्र चढ़ाना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है।

  • एकादशी महात्म्य का पाठ करना।

  • दान देना और गरीबों को भोजन कराना श्रेष्ठ माना गया है।

आध्यात्मिक महत्व
यह व्रत पापों का नाश करता है और मृत्यु के बंधनों से रक्षा करता है। यह आत्मानुशासन, शांति और लंबी उम्र प्रदान करता है।

निष्कर्ष
पाशांकुशा एकादशी केवल व्रत का दिन नहीं, बल्कि आत्मा की मुक्ति की दिशा में एक पवित्र यात्रा है। भगवान विष्णु की उपासना से भक्त उनके आशीर्वाद से सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर बढ़ते हैं।

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