पर्व का परिचय:
'बेसतु वर्ष' गुजरात में मनाया जाने वाला नववर्ष है, जो दिवाली के अगले दिन, अर्थात कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। यह दिन 'नूतन वर्ष' या 'साल मुबारक' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं और नए उत्साह के साथ नए वर्ष की शुरुआत करते हैं।
कथा:
बेसतु वर्ष के साथ जुड़ी एक प्रमुख कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसने 16,000 कन्याओं को बंदी बना रखा था। श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्त कराकर इस दिन को विजय और नई शुरुआत का प्रतीक बनाया। इसलिए, इस दिन को नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
हम यह पर्व क्यों मनाते हैं:
बेसतु वर्ष का पर्व नई शुरुआत, समृद्धि और खुशहाली की कामना के लिए मनाया जाता है। यह दिन व्यापारियों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि वे इस दिन नए खाता-बही की शुरुआत करते हैं। लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, रंगोली बनाते हैं और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, ताकि नए वर्ष में सुख-समृद्धि बनी रहे।
पर्व की प्रमुख परंपराएँ:
साफ-सफाई और सजावट: लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और रंगोली बनाते हैं।
मंदिर दर्शन: सुबह-सुबह लोग मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करते हैं।
आशीर्वाद लेना: बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है।
शुभकामनाएं देना: लोग एक-दूसरे को 'साल मुबारक' कहकर नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं।
मिठाई वितरण: मिठाई और उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है।
पर्व का महत्व:
बेसतु वर्ष केवल एक नए कैलेंडर वर्ष की शुरुआत नहीं है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, सामाजिक समरसता और पारिवारिक एकता का प्रतीक है। यह दिन हमें अपने जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और खुशहाली लाने की प्रेरणा देता है।