पर्व का परिचय:
नंद महोत्सव जन्माष्टमी के ठीक अगले दिन मनाया जाता है। यह भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में आयोजित किया गया आनंद और उल्लास से भरा उत्सव है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, और अगले दिन नंद बाबा ने गाँव में उत्सव और दान का आयोजन किया — यही नंद महोत्सव कहलाता है।
नंद महोत्सव की कथा:
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद, वासुदेव जी उन्हें मथुरा से गोकुल ले जाते हैं। वहाँ नंद बाबा और यशोदा जी उन्हें अपनी संतान मानकर अत्यंत हर्षित होते हैं। अगले दिन नंद बाबा पूरे गाँव में घी, दही, मिठाई और वस्त्रों का दान करते हैं। लोग नृत्य-गान करते हैं और यह आनंद का पर्व बन जाता है — यही है नंद महोत्सव।
यह पर्व कैसे मनाया जाता है:
1. उत्सव और दान:
लोग मिठाइयाँ बाँटते हैं और भगवान के जन्म की खुशी में गरीबों को दान देते हैं।
2. मटकी फोड़:
कई स्थानों पर मटकी फोड़ प्रतियोगिता होती है, जिसमें युवक श्रीकृष्ण की भूमिका निभाते हुए ऊँचाई पर लटकी दही की मटकी फोड़ते हैं।
3. भजन और नृत्य:
मंदिरों में भजन, कीर्तन, आरती और नृत्य होते हैं — श्रीकृष्ण की भक्ति में लोग लीन हो जाते हैं।
4. बच्चों के लिए विशेष दिन:
इस दिन कई लोग अपने बच्चों को बालकृष्ण के रूप में सजाते हैं और भगवान के आशीर्वाद की कामना करते हैं।
नंद महोत्सव का महत्व:
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भगवान के अवतार की खुशी: यह सिर्फ एक जन्मोत्सव नहीं, बल्कि धर्म, प्रेम और आनंद के आगमन का प्रतीक है।
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सांस्कृतिक एकता: यह पर्व समाज में भाईचारे और मिलजुल कर रहने की भावना को बढ़ावा देता है।
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भक्ति और श्रद्धा का उत्सव: यह भक्तों के लिए श्रद्धा, प्रेम और सेवा भावना से जुड़ने का अवसर है।
नंद महोत्सव एक ऐसा पर्व है जो श्रीकृष्ण के बालस्वरूप की भक्ति और समाज में आनंद और एकता का संदेश देता है। यह पर्व हमें प्रेम, भक्ति और उल्लास के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है।