परिचय
महर्षि वाल्मीकि जयंती महान ऋषि वाल्मीकि की जयंती के रूप में अश्विन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। वे रामायण के रचयिता और भारतीय साहित्य के आदिकवि माने जाते हैं।
प्रारंभिक जीवन
वाल्मीकि का जन्म रत्नाकर नाम से एक वनवासी परिवार में हुआ था। वे शुरू में डाकू थे और लोगों को लूटते थे। एक दिन नारद मुनि से भेंट होने पर उन्होंने आत्मचिंतन शुरू किया और 'मरा-मरा' जपते हुए वर्षों तपस्या की। इससे उनका हृदय परिवर्तित हुआ और वे महान ऋषि बने।
साहित्यिक योगदान
वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण विश्व का एक महानतम महाकाव्य है, जिसमें 24,000 श्लोक हैं। यह भगवान राम के जीवन, धर्म और आदर्शों का सजीव चित्रण करता है। उन्हें संस्कृत साहित्य का प्रथम कवि अर्थात आदिकवि कहा जाता है।
आध्यात्मिक महत्व
वाल्मीकि का जीवन दिखाता है कि पश्चाताप और साधना से मनुष्य किसी भी गहराई से उठकर आध्यात्मिक शिखर तक पहुँच सकता है। यह परिवर्तन की शक्ति का प्रतीक है।
जयंती उत्सव
इस दिन भारतभर के मंदिरों और आश्रमों में रामायण का पाठ, कीर्तन, सत्संग और शोभायात्राएं आयोजित की जाती हैं। उनके आदर्शों और साहित्यिक योगदान को रेखांकित करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं।
सामाजिक प्रासंगिकता
वाल्मीकि को समाज सुधारक और समानता के प्रतीक के रूप में भी माना जाता है। वे हमें यह सिखाते हैं कि धर्म, कर्म और ज्ञान का मार्ग सबके लिए खुला है।
निष्कर्ष
महर्षि वाल्मीकि जयंती आत्मपरिवर्तन, भक्ति और साहित्य की महिमा का उत्सव है। उनका जीवन आज भी सत्य, धर्म और न्याय की प्रेरणा देता है।