पर्व का परिचय
महाअष्टमी, जिसे दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है, नवरात्रि का आठवां दिन है और दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा के उग्र और शक्तिशाली रूप महिषासुरमर्दिनी की पूजा की जाती है।
पौराणिक मान्यता
देवी महात्म्य के अनुसार, इस दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर राक्षस का वध किया था। यह दिन धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक है। देवी का यह रूप अनेक अस्त्रों से सुसज्जित और सिंह पर सवार होता है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
कन्या पूजन परंपरा
महाअष्टमी पर कन्या पूजन का विशेष महत्व है। इस पूजा में नौ कन्याओं को देवी के नौ रूपों के प्रतीक रूप में पूजा जाता है। उनके चरण धोए जाते हैं, उपहार दिए जाते हैं और उन्हें विशेष भोजन कराया जाता है। यह नारी शक्ति और पवित्रता का सम्मान है।
संधि पूजा
बंगाल और पूर्वी भारत में अष्टमी और नवमी के संधिकाल में संधि पूजा होती है। मान्यता है कि इसी समय देवी चामुंडा ने चंड और मुंड नामक राक्षसों का वध किया था। इस पूजा में 108 दीपक जलाए जाते हैं और 108 कमल पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
कैसे मनाया जाता है
मंदिरों और पंडालों में सजावट की जाती है, विशेष भोग बनाए जाते हैं, और भक्त उपवास रखकर पूजा करते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम, धुनुची नृत्य और भजन कीर्तन से वातावरण भक्तिमय बनता है।
आध्यात्मिक महत्व
इस दिन देवी की पूजा करने से आत्मबल, सुरक्षा और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद मिलता है। यह दिन आत्मिक शक्ति के जागरण का प्रतीक है।
निष्कर्ष
महाअष्टमी शक्ति, विजय और भक्ति का पर्व है। यह हमें सिखाता है कि नारी शक्ति की उपासना से जीवन में संतुलन और सफलता मिलती है।