पर्व का परिचय:
केवड़ा तीज भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाया जाने वाला एक पारंपरिक व्रत है, जिसमें महिलाएँ पति की लंबी आयु और सौभाग्य के लिए प्रार्थना करती हैं। इस दिन केवड़ा फूल का विशेष महत्व माना जाता है और पूजा में इसका उपयोग होता है।
केवड़ा तीज की कथा:
कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। भाद्रपद शुक्ल तृतीया के दिन उन्होंने मिट्टी की शिवमूर्ति बनाई, उसे केवड़ा फूलों से सजाकर पूजा की। पार्वतीजी ने उस दिन निर्जला उपवास रखा। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया और वरदान दिया कि जो स्त्रियाँ इस दिन उपवास रखेंगी, उन्हें अखंड सौभाग्य और पति का साथ मिलेगा।
यह पर्व क्यों मनाते हैं: इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पति की दीर्घायु, वैवाहिक सुख और परिवार की शांति के लिए देवी पार्वती और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना है। अविवाहित युवतियाँ भी अच्छे जीवनसाथी के लिए यह व्रत करती हैं।
पर्व की मुख्य परंपराएँ:
उपवास और पूजा:महिलाएँ इस दिन उपवास रखती हैं और भगवान शिव तथा देवी पार्वती की विशेष पूजा करती हैं।
केवड़ा फूलों की सजावट:
मंदिरों और घरों को केवड़ा फूलों से सजाया जाता है, क्योंकि ये फूल इस पर्व का प्रतीक हैं।
खाद्य आयोजन:
पूजा के बाद, महिलाएँ एकत्रित होकर पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेती हैं।
पर्व का महत्व: यह व्रत महिलाओं के लिए सौभाग्य, पति की दीर्घायु और घरेलू सुख-शांति का प्रतीक है। यह वैवाहिक जीवन में प्रेम और विश्वास बढ़ाने में सहायक है।
पूजा के द्वारा, महिलाएँ परिवार में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करती हैं।
सामाजिक एकता:
यह पर्व महिलाओं के बीच एकता और भाईचारे को प्रोत्साहित करता है, क्योंकि वे मिलकर इस पर्व को मनाती हैं।
केवड़ा तीज का पर्व गुजरात और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न अंग है। यह पर्व महिलाओं की भक्ति, समर्पण और परस्पर सहकार का प्रतीक है, जो समाज में एकता और सद्भावना को प्रोत्साहित करता है।