पर्व का परिचय:
करवा चौथ हिंदू धर्म का एक प्रमुख व्रत है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में विवाहित महिलाओं द्वारा कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जल व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। यह पर्व विवाहित जीवन में प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
पर्व के पीछे की कथा:
करवा चौथ की सबसे प्रसिद्ध कथा करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री की है। करवा का पति नदी में स्नान करते समय एक मगरमच्छ द्वारा पकड़ लिया गया। करवा ने अपने सच्चे प्रेम और तप से यमराज को बुलाया और मगरमच्छ को नरक भेजने की प्रार्थना की। यमराज ने करवा के दृढ़ संकल्प और पतिव्रता धर्म से प्रभावित होकर मगरमच्छ को मृत्यु देकर करवा के पति को जीवनदान दिया।
एक अन्य प्रसिद्ध कथा महाभारत काल से जुड़ी है। जब अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी गए थे, तब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से अपनी चिंता साझा की। तब श्रीकृष्ण ने करवा चौथ व्रत का महत्व बताते हुए इसे रखने की सलाह दी। द्रौपदी ने यह व्रत रखा, जिससे अर्जुन की रक्षा हुई।
हम यह पर्व क्यों मनाते हैं:
यह व्रत पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्ध जीवन के लिए रखा जाता है। करवा चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम, विश्वास और निष्ठा को गहराई देने वाला पर्व भी है। यह एक ऐसा अवसर है जब महिलाएं अपने परिवार और जीवनसाथी के लिए उपवास कर उनका कल्याण चाहती हैं।
पर्व की प्रमुख परंपराएँ:
विवाहित महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी (सास द्वारा दिया गया विशेष भोजन) खाती हैं और दिन भर निर्जल व्रत रखती हैं।
दिनभर पूजा की तैयारियाँ की जाती हैं।
शाम को करवे (मिट्टी के पात्र) में पानी, गेहूं, मिठाई आदि रखकर पूजा की जाती है।
करवा माता और भगवान शिव परिवार की पूजा होती है।
चंद्रमा के दर्शन के बाद छलनी से पति को देखकर व्रत खोला जाता है।
पति, पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तुड़वाता है।
पर्व का महत्व:
करवा चौथ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है। यह नारी शक्ति, तप, श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक पर्व है। इस दिन का उपवास एक महिला के त्याग, प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। यह पर्व न केवल वैवाहिक जीवन को सुदृढ़ करता है, बल्कि परिवार में सकारात्मक ऊर्जा और एकता भी लाता है।