परिचय
कनकदास जयंती प्रसिद्ध संत, भक्त और कवि कनकदास जी की जयंती के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व विशेष रूप से कर्नाटक राज्य में कार्तिक शुक्ल दशमी को धूमधाम से मनाया जाता है।
जीवन और संदेश
कनकदास जी का जन्म 1509 के आसपास कर्नाटक के शिग्गांव में हुआ था। उनका मूल नाम थिम्मप्पा नायक था। वे भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त, कवि और समाज सुधारक थे।
धार्मिक योगदान और भक्ति साहित्य
कनकदास जी ने कई भक्ति रचनाएं लिखीं, जिनमें भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम, समाज में समानता, और नैतिक मूल्यों की शिक्षा मिलती है। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में ‘मोहन तारंगिनी’, ‘रामध्यानचरिते’ और ‘हरिभक्तिसारा’ शामिल हैं।
उडुपी मंदिर की घटना
एक प्राचीन कथा के अनुसार, कनकदास को उडुपी के मंदिर में प्रवेश से रोका गया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपनी मूर्ति का मुख पश्चिम की ओर मोड़ दिया जिससे कनकदास को दर्शन हो सकें। आज भी वह खिड़की “कनकना किंदि” के रूप में पूजनीय है।
उत्सव और परंपरा
कनकदास जयंती पर स्कूलों, मंदिरों और सामाजिक संस्थाओं में विशेष भजन, प्रवचन, कविता पाठ और भक्ति संगीत के कार्यक्रम होते हैं। लोग उनके जीवन से प्रेरणा लेकर समाज सेवा और आध्यात्मिकता को अपनाते हैं।
निष्कर्ष
कनकदास जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि ईश्वर की भक्ति और समाज के लिए सेवा ही सच्चा धर्म है।