त्योहार का परिचय:
गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास के पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह दिन गुरु को सम्मानित करने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए होता है। गुरु हमें अज्ञान से प्रकाश की ओर मार्गदर्शित करते हैं। साथ ही, यह दिन महर्षि वेद व्यास के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों का संकलन और महाभारत की रचना की थी, और जिन्हें आदिगुरु कहा जाता है।
गुरु पूर्णिमा की पृष्ठभूमि:
“गुरु” का अर्थ है “जो अज्ञान का अंधकार दूर करता है।” गुरु पूर्णिमा महर्षि वेद व्यास की शिक्षाओं और आध्यात्मिक योगदान को समर्पित है। बौद्ध धर्म में भी इस दिन भगवान बुद्ध ने अपने प्रथम उपदेश की शुरुआत की थी।
हम यह त्योहार क्यों मनाते हैं:
यह त्यौहार गुरु‑शिष्य परंपरा की महत्ता को मान्यता देता है, जो व्यक्तिगत और नैतिक विकास में संवार में भूमिका निभाती है। यह आध्यात्मिक साधकों, विद्यार्थियों और योग–प्रेरितों द्वारा मनाया जाता है, और यह विनम्रता, आभार और सतत् शिक्षा को प्रेरित करता है।
गुरु पूर्णिमा की मुख्य परंपराएं:
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सुबह की आरंभिक विधियां: भक्त सुबह जल्दी स्नान करते हैं और मंदिर, आश्रम या गुरु के स्थान पर जाते हैं।
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गुरुओं को भेंट: फूल, फल, वस्त्र, मिठाइयाँ आदि भेंट की जाती हैं।
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गुरु पूजा / व्यास पूजा: गुरु (विशेषकर वेद व्यास) की पूजा-अर्चना की जाती है।
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शास्त्र पाठ: भगवद गीता, उपनिषद, गुरु स्त्रोत जैसे ग्रंथों का पाठ और कीर्तन।
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संस्थागत कार्यक्रम: विद्यालयों, विश्वविद्यालयों और आध्यात्मिक संगठनों द्वारा आदर-सम्मान कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
त्योहार का महत्व:
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दिव्य मार्गदर्शन: गुरु ज्ञान और आत्म–बोध का प्रकाश प्रदान करते हैं।
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आध्यात्मिक विनम्रता: शिष्य विनम्रता और आस्था को अपनाकर सीखता रहता है।
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संस्कृति परंपरा: गुरु‑शिष्य परंपरा भारतीय आध्यात्मिक जीवन का मूल आधार है।
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सार्वभौमिक प्रासंगिकता: हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म और अन्य आध्यात्मिक मार्गों में भी इसका महत्त्व है।