त्योहार का परिचय:
गौरिव्रत समापन पवित्र गौरिव्रत के पांचवें और अंतिम दिन का प्रतीक है। यह व्रत मुख्य रूप से गुजरात की अविवाहित लड़कियाँ पार्वती माता की कृपा के लिए करती हैं। यह व्रत आषाढ़ पूर्णिमा को समाप्त होता है।
गौरिव्रत की कथा:
गौरिव्रत से भक्तगण पार्वती माता के तप, भक्ति और शक्ति का अनुसरण करते हैं। यह व्रत उनके शुद्ध हृदय, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक है।
हम यह त्यौहार क्यों मनाते हैं:
गौरिव्रत समापन पाँच दिन की भक्ति का अंत मनाने के लिए आयोजित किया जाता है। यह माता के वर-विवाह आशीर्वाद का प्रतीक है और स्त्री शक्तिप्रति विश्वास को मजबूत करता है।
गौरिव्रत समापन की प्रमुख परंपराएं:
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प्रातः स्नान और परिधान: सुबह जल्दी स्नान कर पारंपरिक सफाई कपड़े पहनना।
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पूजा एवं भेंट: देवी गौरी को फूल, धूप, फल, और मिठाई अर्पित करना।
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आरती एवं मंत्र: आरती करना और गौरी माता के मंत्रों का उच्चारण।
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व्रत उद्यापन: फलों, दूध और साधारण भोजन से व्रत खोलना।
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दान करना: ब्राह्मणों या जरूरतमंद महिलाओं को दान देना।
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जवारा विसर्जन: कुछ भक्त मंदिर जाकर जवारा (गेहूं के अंकुरित बर्तन) विसर्जन करते हैं।
त्योहार का महत्व:
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पांच दिनों की आध्यात्मिक अनुशासन की पूर्ति।
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पार्वती माता की तपस्या और वैवाहिक जीवन के आशीर्वाद का प्रतीक।
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देवी शक्ति और आत्म-अनुशासन में आस्था को मजबूत बनाना।