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गौरीव्रत प्रारम्भ

व्रत का परिचय:

गौरिव्रत मुख्य रूप से गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में अविवाहित लड़कियों द्वारा पांच दिनों तक किया जाता है। यह आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर पूर्णिमा (पूर्ण चंद्र दिन) तक चलता है। यह व्रत देवी पार्वती (गौरी माता) को समर्पित है और एक सज्जन जीवन साथी की प्राप्ति के लिए किया जाता है, जो पार्वती और शिव के दिव्य विवाह का अनुकरण है।

गौरिव्रत की कथा:

देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। उनकी दृढ़ भक्ति और तपस्या ने शिव को प्रसन्न किया और उन्होंने पार्वती से विवाह किया। गौरिव्रत इस भक्ति, अनुशासन और दिव्य प्रेम की स्मृति में रखा जाता है।

हम यह व्रत क्यों करते हैं:

यह व्रत शुभ वैवाहिक जीवन, पति की शृंगार और सुख-शांति के लिए किया जाता है। यह आत्मशुद्धि और समर्पण को प्रोत्साहित करता है तथा पार्वती के तप को सम्मानित करता है। यह युवा लड़कियों के लिए आध्यात्मिक परिपक्वता का प्रतीक भी है।

गौरिव्रत की मुख्य परंपराएं:

  • संकल्प एवं समय: आषाढ़ की शुक्ल एकादशी से संकल्प लेकर पांच दिन का व्रत रखा जाता है।

  • सुबह की विधियां: सुबह जल्दी उठकर स्नान करना और साधारण वस्त्र पहनना।

  • गौरी पूजा: गौरी माता की चित्र या मूर्ति बनाकर फल, कच्चा चावल, फूल, कुमकुम, धूप अर्पित करना।

  • उपवास एवं आहार: दूध, फल और साधारण सात्विक आहार का सेवन; नमक और अनाज का त्याग।

  • भक्ति कार्य: गौरी मंत्रों का जप, व्रत कथा का पाठ और भजन गान।

व्रत का महत्व:

  • वैवाहिक आशीर्वाद: एक धर्मात्म जीवन साथी की प्राप्ति के लिए माता पार्वती से आशीर्वाद की कामना।

  • शुद्धता एवं अनुशासन: पवित्रता, संयम एवं आत्मशुद्धि को बढ़ावा।

  • भक्ति का सम्मान: पार्वती माता की निष्ठा, तपस्या और त्याग का सम्मान।

  • संस्कृतिक परिपक्वता: यह युवा कन्याओं के लिए पारंपरिक आध्यात्मिक अभ्यास का प्रतीक है।

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