त्योहार का परिचय:
फूलकजली व्रत गुजरात और पश्चिम भारत के कुछ भागों में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक पारंपरिक व्रत है। यह श्रावण मास की वद चतुर्थी को मनाया जाता है। व्रत का उद्देश्य है पति की लंबी उम्र, संतान की रक्षा और परिवार में सुख-शांति की कामना।
व्रत की विधि और पूजा:
सुबह महिलाएं स्नान करके उपवास करती हैं। घर में रंगोली बनाकर देवी चौथ या गौरी माता का चिह्न या चित्र बनाया जाता है। पूजा में फूल, चावल, हल्दी, कुमकुम और फूलकजली (फूलों की माला) चढ़ाई जाती है। चंद्रमा के दर्शन के बाद चंद्रदेव को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त किया जाता है।
व्रत का महत्व:
यह व्रत वैवाहिक सौहार्द, संतान सुख, और कुटुंब की समृद्धि के लिए किया जाता है। यह महिलाओं की निष्ठा, आस्था और आत्मिक शक्ति का प्रतीक है।
सांस्कृतिक विशेषताएँ:
ग्रामीण इलाकों में महिलाएं मिलकर भजन-कीर्तन, फूलों का आदान-प्रदान, और एक-दूसरे की कुशलता की कामना करती हैं। यह व्रत नारी एकता, संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों को मजबूत करता है।