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देवशयनी एकादशी

त्योहार का परिचय:

देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी एकादशी, हरि शयनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहा जाता है, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह दिन चातुर्मास के शुभारंभ का प्रतीक है, जब भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में चले जाते हैं।

पौराणिक कथा:

पद्म पुराण के अनुसार, जब असुरों ने देवताओं को पीड़ा दी, तब वे भगवान विष्णु की शरण में गए। भगवान ने उन्हें वचन दिया कि वे उनकी रक्षा करेंगे और उन्हें इस एकादशी का व्रत करने का उपदेश दिया। इस व्रत का पालन करने से हजार अश्वमेध यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

इस दिन भगवान विष्णु शेषनाग पर क्षीर सागर में विश्राम करते हैं और चार महीने की योगनिद्रा में चले जाते हैं। वे कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) पर जागते हैं।

यह पर्व क्यों मनाया जाता है:

देवशयनी एकादशी आत्मचिंतन, भक्ति और संयम का संदेश देती है। यह दिन चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं और भक्त आत्मानुशासन का पालन करते हैं।

मुख्य परंपराएं:

चातुर्मास का आरंभ:

  • भक्त चार महीने के लिए किसी वस्तु या आदत का त्याग करते हैं।

  • ध्यान, मौन, जप और शास्त्र पठन जैसे आध्यात्मिक कार्य किए जाते हैं।

पंढरपुर वारी यात्रा:

  • महाराष्ट्र में लाखों भक्त पंढरपुर में विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर की यात्रा पर निकलते हैं।

मंदिरों में आयोजन:

  • रात्रिभर भजन-कीर्तन, विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है।

  • भगवान विष्णु के लिए प्रतीकात्मक शयन आसन तैयार किया जाता है।

व्रत कथा और उपवास:

  • एकादशी व्रत कथा का श्रवण किया जाता है।

  • भक्त मौन, सेवा और आत्मनियंत्रण का अभ्यास करते हैं।

पर्व का महत्व:

आध्यात्मिक शुद्धि:

इस दिन उपवास करने से पापों का नाश होता है और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।

अंतरात्मा की जागृति:

जब भगवान सोते हैं, तब आत्मा को जागृत होकर ईश्वर की ओर बढ़ना चाहिए।

धर्म के मार्ग पर चलना:

यह पर्व संयम, भक्ति और धर्म के मार्ग की प्रेरणा देता है।

 

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