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परिचय
बोल चौथ श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से गौ माता की पूजा और संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखने वाली माताओं को समर्पित है। मुख्य रूप से यह पर्व गुजरात और आसपास के क्षेत्रों में आस्था और श्रद्धा से मनाया जाता है।

त्योहार का महत्व
गाय को हिंदू धर्म में माँ के समान स्थान प्राप्त है। बोल चौथ के दिन महिलाएं गोधन (गायों) की पूजा करती हैं और अपने बच्चों के आरोग्य, लंबी उम्र और समृद्ध जीवन के लिए उपवास रखती हैं। यह पर्व मातृत्व, त्याग और वचन की शक्ति को दर्शाता है।

पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, एक गाय अपने बछड़े को दूध पिलाने जा रही थी, जब रास्ते में एक शेर ने उसे रोका। गाय ने शेर से विनती की कि वह बछड़े को दूध पिलाकर लौट आएगी। शेर ने गाय की सच्चाई पर विश्वास करके उसे जाने दिया। गाय वचन अनुसार वापस लौटी, और उसकी सत्यनिष्ठा से प्रभावित होकर शेर ने उसे मुक्त कर दिया। इस घटना से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन को विशेष माना और इसे बोल चौथ के रूप में मान्यता दी।

व्रत और पूजा विधि
इस दिन महिलाएं दूध और उससे बने पदार्थों का त्याग करती हैं और उपवास करती हैं। संध्या के समय गौ माता की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। गाय को स्नान कराकर तिलक, फूल और विशेष आहार अर्पित किया जाता है। पूजा के बाद ही उपवास खोला जाता है।

सांस्कृतिक महत्व
बोल चौथ न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह गौ सेवा, मातृत्व प्रेम, सत्य और वचन के प्रति निष्ठा को दर्शाने वाला पर्व है। यह मनुष्य और पशु के बीच के सजीव संबंध का प्रतीक भी है।

निष्कर्ष
बोल चौथ एक भावनात्मक और आध्यात्मिक पर्व है जो माताओं द्वारा संतान की भलाई के लिए मनाया जाता है। यह पर्व गऊ माता की महिमा और मातृत्व की निःस्वार्थ भावना को श्रद्धा के साथ अभिव्यक्त करता है।

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