पर्व का परिचय
अन्नकूट उत्सव, जिसे गोवर्धन पूजा भी कहा जाता है, दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की स्मृति में मनाया जाता है और इस दिन भगवान को अन्न का भोग अर्पित किया जाता है।
श्रीकृष्ण और गोवर्धन कथा का संबंध
भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के घमंड को तोड़ने के लिए गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा। जब इंद्र ने भारी वर्षा की, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली से उठाकर सभी को बचाया। उसी दिन की स्मृति में अन्नकूट मनाया जाता है।
अन्नकूट का अर्थ
‘अन्न’ यानी भोजन और ‘कूट’ यानी ढेर — इसका तात्पर्य है भगवान को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का विशाल भोग अर्पित करना। यह प्रसाद भक्तों में बांटा जाता है।
मुख्य आयोजन और विधियाँ
मंदिरों में भगवान के लिए विशाल अन्नकूट सजाया जाता है।
भक्तजन सैकड़ों प्रकार के शुद्ध शाकाहारी व्यंजन बनाते हैं।
पूरे मंदिर को दीपों और फूलों से सजाया जाता है।
भजन-कीर्तन और आरती का आयोजन होता है।
प्रसाद वितरण के साथ सामूहिक भक्ति होती है।
स्वामीनारायण परंपरा में विशेष महत्व
स्वामीनारायण संप्रदाय में अन्नकूट उत्सव अत्यंत भव्यता से मनाया जाता है। हजारों प्रकार के व्यंजन मंदिरों में अर्पित किए जाते हैं और भक्तों को दर्शन करवाए जाते हैं।
पर्व का महत्व
अन्नकूट केवल खाने का त्यौहार नहीं, बल्कि यह ईश्वर के प्रति भक्ति, सेवा और समर्पण का प्रतीक है। यह त्यौहार समाज में एकता, साझा भक्ति और आनंद का संदेश देता है।