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परिचय
अखातीज जिसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है, वैसाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। ‘अक्षय’ का अर्थ होता है – जो कभी समाप्त न हो। यह दिन हर शुभ कार्य, दान, खरीदारी और धार्मिक उपवास के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

पौराणिक कथा और ऐतिहासिक महत्व
शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, इसलिए यह ‘परशुराम जयंती’ भी है। पांडवों को श्रीकृष्ण द्वारा अक्षम पात्र इस दिन दिया गया था। अन्नपूर्णा देवी का भी अवतरण इसी दिन हुआ था। यह तिथि त्रेतायुग के आरंभ से भी जुड़ी हुई है।

धार्मिक महत्व और विश्वास
अक्षय तृतीया पर किया गया दान, जप, ध्यान और धर्मकर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता। इस दिन गंगा स्नान, जप-तप, ब्राह्मण भोजन और गाय को दान करना अत्यंत पुण्यदायी होता है। यह दिन मांगलिक कार्यों जैसे गृह प्रवेश, विवाह या मुहूर्त की शुरुआत के लिए भी श्रेष्ठ माना जाता है।

परंपरा और पूजा विधि
लोग इस दिन नए वस्त्र, आभूषण (विशेषकर सोना) और घर के लिए शुभ चीजें खरीदते हैं। भगवान विष्णु, लक्ष्मी और परशुराम जी की पूजा की जाती है। कहीं-कहीं अन्नकूट उत्सव या विशेष भोग का आयोजन भी होता है। खेती-किसानी से जुड़े लोग इस दिन को कृषि कार्य की शुरुआत के लिए भी आदर्श मानते हैं।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण
यह तिथि केवल भौतिक सुख-संपत्ति के लिए नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और प्रभु कृपा प्राप्ति के लिए भी अनमोल अवसर है। साधना, दान और भक्ति से जीवन को सही दिशा मिलती है।

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