व्रत विधि:
श्रावण वद पंचम के दिन यह व्रत किया जाता है।व्रती सुबह जल्दी उठती है, नहा-धोकर नहाऊँ के पास नाग का चित्र बनाती है, घी का दिया जला कर पूजा करती है।इसके बाद बाजरे के आटे की ठंड़ी घी में चोली हुई कुलेर नैवेद्य के रूप में रखती है और एकटाण (एक बार भोजन) करती है। उस दिन पिछले दिन भिगोए हुए मूठ, मूंग, बाजरा के साथ ककड़ी और अचार भी खाया जा सकता है।इस व्रत से घर में बार-बार होने वाले झगड़े ख़त्म होते हैं और संपत्ति बढ़ती है।नागदेवता की कृपा से धन-धान्य का भंडार अकूट रहता है।
व्रत कथा:
एक गाँव में एक डोशी माता रहती थी, उनके छह पुत्र और बहुएँ थीं। उनमें से पाँच बहुओं के माता-पिता थे, परिवार था। लेकिन छोटी बहू राधा का कोई परिवार नहीं था। इसलिए सभी उसे “नपिरी” कहकर ताने मारते थे। उसके पास सास-ससुर और जेठाणियाँ बहुत श्रम कराती थीं। उसे पर्याप्त भोजन भी नहीं देते थे।
भाद्रपद का महीना आया और घर में खीर बनी थी। घर वालों ने पेट भरकर खीर खाई। लेकिन किसी ने छोटी बहू राधा को नहीं बुलाया। वह गर्भवती थी और खीर खाने की इच्छा हुई। सास ने कहा कि जो बचा हो वही खा ले और बर्तन धो ले।
राधा जब रसोई में गई तो पतीली में कुछ भी खाने योग्य नहीं था। खीर की पतीली में सिर्फ बाझे हुए पॉपड़े थे। वह निराश हो गई। फिर भी उसने पॉपड़े निकाल कर एक कपड़े में रखे, सोचकर कि बर्तन धोने के बाद खा लेगी।
अब ऐसा हुआ कि वह पॉपड़े कपड़े में रखकर पेड़ के नीचे रख गई थीं। तभी एक नागिण आई और वह पॉपड़े खा गई। नागिण भी गर्भवती थी। कुछ समय बाद जब राधा बर्तन धोकर पेड़ के पास आई, तो कपड़े से पॉपड़े ग़ायब थे।
नागिण यह सब झपकी पीछे से देख रही थी। उसके मन में था कि अब राधा मुझे गालियाँ देगी। लेकिन आश्चर्य हुआ — राधा ने कहा, “जिसने खाए हैं उसका पेट ठंडा हो।”
ये सुनकर नागिण प्रसन्न हुई और वह मानव रूप में आई। उसने पूछा, “बहन, तुम्हें किस बात का दुख है?”
राधा ने अपना दुख ज़ाहिर करते हुए कहा, “मां, मेरे पियरे (मायादर) में कोई सगा नहीं है। तो सब मुझे 'मेरा माँ' कहते हैं। वहीं कुछ दिनों में मेरा गोद भरणा है। मुझे कोई भाई नहीं है—मैं किसको बुलाऊँ?” इतना कहते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए।
नागिण का हृदय पिघल गया और उसने कहा, “तूं मत रो। तुझे चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। जिस दिन तेरा भरणा होगा, उस दिन मेरे बिल के पास एक कंगण (कन्वोट्री) रख देना।”
ये सुनकर राधा खुश हुई। कुछ दिनों बाद राधा का गोद भरणा होने वाला था। जेठाणियाँ उस पर ताना मारने लगीं, कहने लगीं: “पियरे में तो कोई सगा ही नहीं—तेरा भरणा क्या होगा?”
यह सुनकर छोटी बहू दुखी हुई और सास से कहा: “मेरे पियरे में दूर के एक सगा हैं—I want to send them a kankotri.” सास ने चुपचाप, बड़ी बहू से एक छोटी चिट्ठी लिखवाई और छोटी बहू को दे दी।
छोटी बहू प्रसन्न हुई। उसने कंगण लिया, नागिण के बिल के पास जाकर रखा और प्रार्थना कर घर वापस लौटी। गोद भरने का समय आया। जेठाणियाँ भीतर-भीतर मजाक करते हुए कहने लगीं कि—“आज तो छोटी बहू बहुत सुंदर गहने और वस्त्र देगी हमें। उसके परिवार से ठेलियाँ आएंगी सब देने।”
छोटी बहू यह सुनकर निराश हुई और मन से नागदेवता से प्रार्थना करने लगी। तभी दूर से ठेलियों की आवाज सुनाई दी। सब एक साथ उस दिशा की ओर देखने लगे। कुछ देर बाद ठेलियाँ आंगन में आईं और ठहर गईं।
ठेलियों से उतरे—अद्भुत सौंदर्य वाले नागिण, नागदेवता और नागकुमार। उनके पीछे दो नौकर सोने की पेटियाँ लेकर उतरे। बाद में और भी गाड़ियां आकर रुकीं।
नानी (राधा) का भरणा नागकुमारों ने धूमधाम से कराया। हर बहू को पहनावे में सोना, चांदी, हीरा-मोती की डागीने, महँगे वस्त्र दिए—सभी खुश हुए।
भरणा पूरा होने पर नागिण ने सास से कहा: "भवानी, मेरी बेटी को विदा कर दो। सुवाड़ पड़ी गई—मैं स्वयं ले जाऊँगी।"
सास-बिचारी क्या कहती? सब देखते रह गए हक्का-बक्का! नागिण ने छोटी बहू को अपनी संग विदा की। राधा नागिण के साथ चली, लेकिन मन में संशय था—नागिण कहाँ ले जाएगी?
लेकिन जैसे ही वह झुक कर गईं, नागिण ने हाथ हिलाया और भूमि खुली—एक गुफ्त थी जिसे भोंयरा कहा। उस भोंयरे से होकर वे महल में पहुँचे। राजाओं से भी भव्य वह महल देखकर राधा अचम्भित रह गई।
नागिण ने बहू से कहा: "तेरे अब कोई काम नहीं—खाई-पी, हिंडोले पर झूल। बस एक काम करना—सुबह-दोपहर-साँझ इस चांदी की घंटी को बजा और नग़कुमारों को इकट्ठा कर दूध पिला देना।"
छोटी बहू ने यह काम प्रसन्नता से स्वीकार किया। दिन बीतते गए। एक शुभ दिन उसे एक दिव्य जैसा पुत्र हुआ। सभी राजाएँ तब अचंभित रह गईं। बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होने लगा।
एक दिन बहू रसोई में गर्म दूध जमा रही थी और कोई काम करने जा रही थी। तभी बच्चा चांदी की घंटी लेकर बजाने लगा। घंटी की आवाज सुनकर सारे नागकुमार दौड़कर आए। ये देखकर बच्चा घबरा गया, और उसके हाथ से घंटी गिर गई।
उसमें से दो नागकुमारों की पूँछ कट गई। दूसरे नागकुमारों ने गर्म दूध पीने से उनके मुँह जल गए।
नागकुमार बांडिया-बुचिया हो गए और घबराकर बच्चे पर कूद पड़े। उसी समय बहू आई और बच्चे को बचा लिया। नागकुमारों की यह दशा देखकर उसे बेचैनी हुई। पर छोटे बच्चे को क्या समझाया जाए? नाग-नागिण ने नागकुमार को शांत किया। लेकिन नागकुमारों के मन में अब भी जलन थी।
कुछ दिनों बाद बहू को ससुराल भेज दिया गया। सासुराल में भी अब छोटी बहू की इज्जत बढ़ने लगी। इसलिए जेठाणियाँ उस पर जलने लगीं। दूसरी ओर नागकुमार भी अब उस पर और बच्चे पर भड़क गए। वे उसे डराने के लिए घर आ गए और छुप गए।
इसी बीच छोटी बहू पानी की बिन भरी लाते समय ठोकर खाई। उसने उठकर कहा, “खम्मा, मेरे बांडिया-बुचिया भाइयों को।”
यह सुन नागकुमारों के मन में आइडिया आया कि—“बहन कितनी अच्छी है, वह अभी भी हमें याद करती है।” कुछ बार उनका उतरा अनुभव हुआ—उनकी बहन की यह श्रद्धा देखकर नागकुमारों ने बच्चे को काटने का विचार छोड़ दिया।
एक दिन छोटा बच्चा जेठानी की तांबड़ी दूध की ढाल से गिरा। उसने गुस्से में कहा, “तुम्हारे दूध गिलाकार गिराने से तुम्हें क्या मिला? तुम बड़े घर की हो—कल गाय-बैलों को पालकर दिखाओ।” लेकिन वे कहाँ से ला सकते थे?
यह सुन राधा बहोत दुखी हुई। उस दिन वह बच्चे को लेकर नागमाता के पास पहुँची और अपना दुख बताया।
नागमाता ने उसे संतोष दिया—और अगले दिन नागकुमारों को गायें भेज भेज दीं। उनमें से कुछ गायें जेठाणी को भी दी गईं। इससे वे बहुत खुश हुईं। पूरा घर आनंद से भर गया।
हे नागदेवता! नानी (राधा) को जिसने फल दिया—ऐसे सभी को फल मिले।




