परिचय
प्रमुख वरणी दिन स्वामीनारायण संप्रदाय के महान संत, प्रेममूर्ति, और विश्व सेवा के प्रेरक प्रमुख स्वामी महाराज को प्रमुखपद पर विराजित करने की पावन तिथि है। यह दिन संस्था के इतिहास में एक आध्यात्मिक मोड़ के रूप में देखा जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
21 मई 1950 को मुंबई के गुमास्ता महादेव मंदिर में योगीजी महाराज ने 28 वर्षीय नारायणस्वरूपदासजी स्वामी को ‘प्रमुख’ घोषित किया। उस क्षण योगीजी ने कहा:
"अब से यह सब कार्यों के प्रमुख हैं। इनका कहा मेरा कहा है।"
यह कोई साधारण घोषणा नहीं थी, बल्कि सेवा, सादगी और समर्पण के युग का आरंभ था।
प्रमुखपद के मूल्य और नेतृत्व
प्रमुख स्वामी महाराज ने अपने जीवन में सादगी, भक्ति, क्षमा, करुणा और सेवा का आदर्श प्रस्तुत किया। उनका जीवन-संदेश ‘In the joy of others lies our own’ आज भी लाखों को प्रेरित करता है।
सेवा और विश्व-प्रसार
प्रमुख स्वामी महाराज ने भारत और विदेशों में हजारों मंदिर, हॉस्पिटल, स्कूल और सेवाप्रकल्प स्थापित किए। उन्होंने संस्कारों की अलख जगाई और भक्ति को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया।
उत्सव और स्मरण
हर वर्ष प्रमुख वरणी दिन पर विशेष सभाओं, सत्संग, आरती और भक्ति गीतों के माध्यम से प्रमुख स्वामी महाराज के जीवन से प्रेरणा ली जाती है। संतों और भक्तों द्वारा उनके आशीर्वाद से जुड़े प्रसंगों को साझा किया जाता है।
निष्कर्ष
प्रमुख वरणी दिन यह सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व सेवा और नम्रता में होता है। यह दिन हर भक्त को जीवन में आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।




